कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

doha yamak

यमकीय दोहा सलिला 
*
​संगसार वे कर रहे, होकर निष्ठुर क्रूर 
संग सार हम गह रहे, बरस रहा है नूर
*
भाया छाया जो न क्यों, छाया उसकी साथ?
माया माया तज लगी, मायापति के हाथ
*
शुक्ला-श्यामा एक हैं, मात्र दृष्टि है भिन्न 
जो अभिन्नता जानता, तनिक न होता खिन्न
*

कोई टिप्पणी नहीं: