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सोमवार, 23 अप्रैल 2018

geet

चित्र पर रचना:


गीत
*
देहरी बैठे दीप लिए दो 
तन-मन अकुलाए.
संदेहों की बिजली चमकी,
नैना भर आए. 
*
मस्तक तिलक लगाकर भेजा, सीमा पर तुमको. 
गए न जाकर भी, साँसों में बसे हुए तुम तो. 
प्यासों का क्या, सिसक-सिसककर चुप रह, रो लेंगी. 
आसों ने हठ ठाना देहरी-द्वार न छोड़ेंगी.
दीपशिखा स्थिर आलापों सी, 
मुखड़ा चमकाए.
मुखड़ा बिना अन्तरा कैसे  
कौन गुनगुनाए?
*
मौन व्रती हैं पायल-चूड़ी, ऋषि श्रृंगारी सी.
चित्त वृत्तियाँ आहुति देती, हो अग्यारी सी. 
रमा हुआ मन उसी एक में जिस बिन सार नहीं.
दुर्वासा ले आ, शकुंतला का झट प्यार यहीं.
माथे की बिंदी रवि सी 
नथ शशि पर बलि जाए.
*
नीरव में आहट की चाहत, मौन अधर पाले.
गजरा ले आ जा निर्मोही, कजरा यश गा ले. 
अधर अधर पर धर, न अधर में आशाएँ झूलें.
प्रणय पखेरू भर उड़ान, झट नील गगन छू लें. 
ओ मनबसिया! वीर सिपहिया!! 
याद बहुत आए. 
घर-सरहद पर वामा 
यामा कुलदीपक लाए.
*  





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