दोहा सलिला
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कथ्य, भाव, छवि, बिंब, लय, रस, रूपक, का मेल।
दोहा को जीवंत कर, कहे रसिक आ खेल।।
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शब्द-शब्द की अहमियत, लय माधुर्य तुकांत।
भाव, बिंब, मौलिक, सरस, दोहा की छवि कांत।।
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शब्द सार्थक-सरल हों, कथ्य कर सकें व्यक्त।
संप्रेषित अनुभूति हो, रस-छवि रहें न त्यक्त।।
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अलंकार चारुत्व से, दोहे का लालित्य।
बालारुण को प्रखरकर, कहे नमन आदित्य।।
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दोहे को मत मानिए, शब्दों की दूकान।
शब्द न नहरें भाव बिन, तपता रेगिस्तान।।
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9.4.2018
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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सोमवार, 9 अप्रैल 2018
दोहा सलिला
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