दोहा सलिला:
*
पूरी हो या अधूरी, ख्वाहिश हर अनमोल
श्वास न ले सकते कभी, मोल चुका या तोल
*
अनुशासन बंधन बिना, भीड़ भोगती दैन्य
अनुशासित हो जीतती, रण हर हरदम सैन्य.
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नेह नर्मदा नित्य नव, स्नेह सलिल से स्नान
कर के कर में कर कमल, खिलखिल खिल अम्लान
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दोहा सलिला प्रवाहित, लहरें करें किलोल
छप-छपाक कर भूल जा, कहाँ ढोल में पोल
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रस का आलिंगन करें, जब-जब मन के भाव
'सलिल' तभी कविता कहे, तुझसे मुझे लगाव
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रूचि का छंद लिखें सदा, रुचिका करे कमाल
पहले सीख विधान लें, फिर दें मचा धमाल.
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गति-यति लय में बँध बने, छंद-छंद रस-खान
छंदहीन कविता 'सलिल', मानव बिन ईमान
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२१.४.२०१८
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पूरी हो या अधूरी, ख्वाहिश हर अनमोल
श्वास न ले सकते कभी, मोल चुका या तोल
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अनुशासन बंधन बिना, भीड़ भोगती दैन्य
अनुशासित हो जीतती, रण हर हरदम सैन्य.
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नेह नर्मदा नित्य नव, स्नेह सलिल से स्नान
कर के कर में कर कमल, खिलखिल खिल अम्लान
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दोहा सलिला प्रवाहित, लहरें करें किलोल
छप-छपाक कर भूल जा, कहाँ ढोल में पोल
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रस का आलिंगन करें, जब-जब मन के भाव
'सलिल' तभी कविता कहे, तुझसे मुझे लगाव
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रूचि का छंद लिखें सदा, रुचिका करे कमाल
पहले सीख विधान लें, फिर दें मचा धमाल.
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गति-यति लय में बँध बने, छंद-छंद रस-खान
छंदहीन कविता 'सलिल', मानव बिन ईमान
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प्रभा विभा आभा लिखें, जी से जी भर छंद.
करें साधना सृजन की, हो गुलाब गुलकंद.
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