शिव भोले सब जानते,
किंतु दिखें अनजान.
जो शिव से छल कर रहा,
वह दुर्मति नादान.
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विनत वंदना कर रहा,
कर जोड़े लंकेश.
कर प्रसन्न चाहे बसें,
लंका उमा-उमेश.
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मातु-पिता कह रमण का,
वर्णन करता मूढ़.
मर्यादा अति सरल सी,
हुई विषय अति गूढ़.
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शिवा संकुचित, शिव हँसे,
समझा हुए प्रसन्न.
समझ न पाया विपद-पल,
हैं उसके आसन्न.
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अहंकारवश भक्त ने,
ठाना शक्ति-प्रयोग.
भक्ति रहित लख शक्ति ने,
किया दंड-विनियोग.
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चाह रहा कैलाश को,
उठा ले चले साथ.
दबा बाँह शिव ने दिया,
झुका दर्प का माथ.
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भोले प्रति भोले रहें,
छल को छल से मात.
देते शिव, हे छली मन!
निर्मल रह दिन-रात.
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15.12.2017
1 टिप्पणी:
वाह! बहुत सुन्दर!
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