अलंकार सलिला ३८
उल्लेख अलंकार
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'सलिल' सत्य हो विदित यदि, भली-भाँति लें देख।
वर्ण्य एक वर्णन कई, अलंकार उल्लेख।।
संस्कृत में उक्ति है 'एकं सत्यम विप्रं बहुधा वदन्ति' अर्थात एक ही सत्य को लोग कई प्रकार से कहते हैं। उल्लेख अलंकार तभी होता है जब उक्त उक्ति के अनुसार एक वर्ण्य का अनेक प्रकार से वर्णन विषयगत तथा ग्रहण करनेवालों के भेद से किया जाता है।
विषयगत तथा ग्रहण करनेवालों के भेद से जहाँ एक वर्ण्य का अनेक प्रकार (कोणों) से अथवा अनेक व्यक्तियों द्वारा अपने - अपने तरीके से वर्णन किया जाता है, वहाँ उल्लेख अलंकार होता है। इसी आधार पर उल्लेख अलंकार के दो भेद माने गये हैं।
अ. बहुकोणीय उल्लेख अलंकार -
जब एक व्यक्ति विविध कोणों से किसी प्रस्तुत अथवा वर्ण्य विषय का वर्णन करता है तो बहुकोणीय उल्लेख अलंकार होता है।
उदाहरण:
१. हम सागर के धवल हंस हैं, जल के धूम्र, गगन की धूल।
अनिल-फेन, ऊषा के पल्लव, वारि-वसन, वसुधा के मूल।।
२. सूरदास की ब्रज-भाषा ने, मुझको दूध पिलाया है।
तुलसी की अवधी ने भी ख़ूब, स्तनपान कराया है।।
पंचमेल खिचडी कबीर की, सुंदर स्वाद चखाया है।
बिहारी के मारक दोहों ने, मेरा श्रृंगार रचाया है।। -डी. के. सिंह
३. जन-गण की भाषा हिंदी है,
अपनों की आशा हिंदी है।
जो लिखते हैं वह पढ़ते हैं-
नये-नये सपने गढ़ते हैं।
अलंकार रस छंद सरस हैं,
दस दिश व्यापा इसका यश है। -सलिल
४. ये दुनिया गोल है, ऊपर से खोल है।
अन्दर से देखो प्यारे! बिलकुल पोलम-पोल है।।
५. लहूलुहान टेसू
परेशान गुलमोहर
सेमल त्रस्त
अमलतास, कनैले, सरसों पीलियाग्रस्त
अमराई को पित्त
महुए को वात
ओ फागुन! तेरे रंग
अब आज़ाद । - सौरभ पाण्डेय, इकड़ियाँ जेबी से
आ. बहुदृष्टीय उल्लेख अलंकार
जहाँ एक वस्तु का अनेक व्यक्तियों द्वारा अनेक प्रकार से वर्णन किया जाता है।
उदाहरण:
१. जानति सौति अनीति है, जानति सखी सुनीति।
गुरुजन जानत लाज है, प्रियतम जानति प्रीति।।
२. कोऊ कहै गगन की गंगा को सरोरुह है,
कोऊ कहै व्योम वानी रानी को सदन है।
कोऊ कहै जल को जम्यों है बिम्ब रघुनाथ,
कोऊ कहै सागर को सुधा मै नदन है।।
कोऊ कहै यामिनी को कंद है आनंद मढ़यो
कोऊ कहै यश जाको करता मदन है।
मोहि परयो जानी मेरी मत अनुमानि यह
चाँदनी तिया है ताको चन्द्रमा वदन है।।
३. कोई कहे राम-नाम, कोई कहे श्याम-नाम, कोई शिव शंकर की कर रहा जय-जय।
कोई पूजे अम्बा जी को, कोई जय गणेश बोले कोई हनुमान जी को पूज रहा निर्भय।।
४. नेता को सरकार देश है / बनिए को बाज़ार है,
अफसर को कुर्सी, बेकारों / को ताज़ा अखबार है।
पंडों खातिर देश चढ़ोत्री / गृहणी को घर-द्वार है,
सैनिक कहता देश वीरता / यौवन कहे बहार है।
हरे हित हरिनाम, 'सलिल' को / देश नर्मदा धार है।।
५. सीढ़ी कठिन चढ़ाव किसी को, कोई कहे उतार है।
शिशु को चढ़ गिरने का भय है, बूढ़ों को दुश्वार है।।
एक कहे सोपान प्रगति है, अवनति दूजा बता रहा।
कहे विषमता कोई तीसरा, चौथा लेता मजा रहा।।
उल्लेख अलंकार की चर्चा कम ही होती है. पाठ्य पुस्तकों में यह प्रायः अप्राप्य है. आधुनिक कवियों और समकालिक साहित्य में अनजाने ही इसका प्रयोग प्रचुरता से हुआ है.
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