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शनिवार, 5 दिसंबर 2015

navgeet

एक रचना:
(तरह मात्रिक जनक छंद )
*
आँसू हैं 
हर आँख में 
आसमान फट पड़ा 
आँसू हैं
हर आँख में
*
अंकुर सूखे वृष्टि बिन
धरती की छाती फटी
कृषक आत्महत्या करें
पत्ते रहे
न शाख में
फूट रहा धीरज-घड़ा
आसमान फट पड़ा
आँसू हैं
हर आँख में
*
अतिरेकी बम फोड़ते
निरपराध मारे गये
बेबस आँसू पोंछते
हाथ न
सूझे हाथ को
शीश चढ़ा, संकट बड़ा
आसमान फट पड़ा
आँसू हैं
हर आँख में
*
जल-प्लावन ने लील लीं
जाने कितनी जिंदगीं
रो - रो सूखी आँख भी
पानी - पानी
हो रही
वज्र सरीखा मन कड़ा
आँसू हैं
हर आँख में
*

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