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मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

navgeet

एक रचना -
*
बंदर मामा 
चीन्ह -चीन्ह कर 
न्याय करे 
*
जो सियार वह भोगे दण्ड
शेर हुआ है अति उद्दण्ड
अपना & तेरा मनमानी
ओह निष्पक्ष रचे पाखण्ड
जय जय जय
करता समर्थ की
वाह करे
*
जो दुर्बल वह पिटना है
सच न तनिक भी पचना है
पाटों बीच फँसे घुन को
गेहूं के सँग पिसना है
सत्य पिट रहा
सुने न कोई
हाय करे
*
निर्धन का धन राम हुआ
अँधा गिरता खोद कुँआ
दोष छिपा लेता है धन
सच पिंजरे में कैद सुआ
करते आप
गुनाह रहे, भरता कोई
विवश मरे
***
१२.१२. १५

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