कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

navgeet

एक रचना
जनता भई परायी
*
सत्ता पा घोटाले करते
तनकऊ लाज न आयी
जाँच भयी खिसियाये लल्ला
जनता भई परायी
*
अपनी टेंट न देखे कानी
औरों को दे दोस
छिपा-छिपाकर ऐब जतन से
बरसों पाले  पोस
सौ चूहे खा बिल्ली हज को
चली, न क्यों पछतायी?
जाँच भयी खिसियाये लल्ला
जनता भई परायी
*
रातों - रात करोड़पति
व्ही आई पी भये जमाई
आम आदमी जैसा जीवन
जीने -गैल भुलाई
न्यायालय की गरिमा
संसद में घुस आज भुलाई
जाँच भयी खिसियाये लल्ला
जनता भई परायी
*
सहनशीलता की दुहाई दें
जो छीनें आज़ादी
अब लौं भरा न मन
जिन्ने की मनमानी बरबादी
लगा तमाचा जनता ने
दूजी सरकार बनायी  
जाँच भयी खिसियाये लल्ला
जनता भई परायी
*



                                                   

कोई टिप्पणी नहीं: