अलंकार सलिला ४०
दृष्टान्त अलंकार
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अलंकार दृष्टान्त को, जानें-लें आनंद|
भाव बिम्ब-प्रतिबिम्ब का, पा सार्थक हो छंद||
जब पहले एक बात कहकर फिर उससे मिलती-जुलती दूसरी बात, पहली बात पहली बात के उदाहरण के रूप में कही जाये अथवा दो वाक्यों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव हो तब वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है|
जहाँ उपमेय और उपमान दोनों ही सामान्य या दोनों ही विशेष वाक्य होते हैं और उनमें बिम्ब - प्रतिबिम्ब भाव हो तो दृष्टांत अलंकार होता है|
दृष्टान्त में दो वाक्य होते हैं, एक उपमेय वाक्य, दूसरा उपमान वाक्यदोनों का धर्म एक नहीं होता पर एक समान होता है|
उदाहरण:
१. सिव औरंगहि जिति सकै, और न राजा-राव|
हत्थी-मत्थ पर सिंह बिनु, आन न घालै घाव||
यहाँ पहले एक बात कही गयी है कि शिवाजी ही औरंगजेब को जीत सकते हैं अन्य राजा - राव नहीं| फिर उदाहरण के रूप में पहली बात से मिलती-जुलती दूसरी बात कही गयी है कि सिंह के अतिरिक्त और कोई हाथी के माथे पर घाव नहीं कर सकता|
२. सुख-दुःख के मधुर मिलन से, यह जीवन हो परिपूरन| फिर घन में ओझल हो शशि, फिर शशि में ओझल हो घन|| ३. पगीं प्रेम नन्द लाल के, हमें न भावत भोग| मधुप राजपद पाइ कै, भीख न माँगत लोग|| ४. निरखि रूप नन्दलाल को, दृगनि रुचे नहीं आन| तज पीयूख कोऊ करत, कटु औषधि को पान|| ५. भरतहिं होय न राजमद, विधि-हरि-हर पद पाइ| कबहुँ कि काँजी-सीकरनि, छीर-सिन्धु बिलगाइ|| ६. कन-कन जोरे मन जुरै, खाबत निबरै रोग| बूँद-बूँद तें घट भरे, टपकत रीतो होय|| ७. जपत एक हरि नाम के, पातक कोटि बिलाहिं| लघु चिंगारी एक तें, घास-ढेर जरि जाहिं|| ८. सठ सुधरहिं सत संगति पाई| पारस परसि कु-धातु सुहाई|| ९. धनी गेह में श्री जाती है, कभी न जाती निर्धन-घर में| सागर में गंगा मिलती है, कभी न मिलती सूखे सर में||
२. सुख-दुःख के मधुर मिलन से, यह जीवन हो परिपूरन| फिर घन में ओझल हो शशि, फिर शशि में ओझल हो घन|| ३. पगीं प्रेम नन्द लाल के, हमें न भावत भोग| मधुप राजपद पाइ कै, भीख न माँगत लोग|| ४. निरखि रूप नन्दलाल को, दृगनि रुचे नहीं आन| तज पीयूख कोऊ करत, कटु औषधि को पान|| ५. भरतहिं होय न राजमद, विधि-हरि-हर पद पाइ| कबहुँ कि काँजी-सीकरनि, छीर-सिन्धु बिलगाइ|| ६. कन-कन जोरे मन जुरै, खाबत निबरै रोग| बूँद-बूँद तें घट भरे, टपकत रीतो होय|| ७. जपत एक हरि नाम के, पातक कोटि बिलाहिं| लघु चिंगारी एक तें, घास-ढेर जरि जाहिं|| ८. सठ सुधरहिं सत संगति पाई| पारस परसि कु-धातु सुहाई|| ९. धनी गेह में श्री जाती है, कभी न जाती निर्धन-घर में| सागर में गंगा मिलती है, कभी न मिलती सूखे सर में||
१०. स्नेह - 'सलिल' में स्नान कर, मिटता द्वेष - कलेश|
सत्संगति में कब रही, किंचित दुविधा शेष||
११. तिमिर मिटा / भास्कर मुस्कुराया / बिन उजाला / चाँद सँग चाँदनी / को करार न आया| - ताँका
टिप्पणी:
१. दृष्टान्त में अर्थान्तरन्यास की तरह सामान्य बात का विशेष बात द्वारा या विशेष बात का सामान्य बात द्वारा समर्थन नहीं होता| इसमें एक बात सामान्य और दूसरी बात विशेष न होकर दोनों बातें विशेष होती हैं|
२. दृष्टान्त में प्रतिवस्तूपमा की भाँति दोनों बातों का धर्म एक नहीं होता अपितु मिलता-जुलता होने पर भी भिन्न-भिन्न होता है|
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