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गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

navgeet

एक रचना:
चालीस चोर
*
चालीस चोर - अलीबाबा
क्योें करते बंटाढार?
*
जनता माँगे
दो हिसाब
क्यों की तुमने मनमानी?
घपले पकड़े गये 
आ रही याद 
तुम्हें अब नानी
सजा दे रहा जनगण
 नाहक क्यों करते तकरार?
चालीस चोर - अलीबाबा
क्योें करते बंटाढार?
*
जननायक से
रार कर रहे
गैरों के पड़ पैर
अपनों से
चप्पल उठवाते 
कैसे होगी खैर?
असंसदीय आचरण
बनाते संसद को बाज़ार
चालीस चोर - अलीबाबा
क्योें करते बंटाढार?
*
जनता समझे
कर नौटंकी
फैलाते पाखंड
देना होगा
फिर जवाब
हो कितने भी उद्दंड 
सम्हल जाओ चुक जाए न धीरज
जन गण हो बेज़ार 
चालीस चोर - अलीबाबा
क्योें करते बंटाढार?
*

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