लघुकथा -
परीक्षा
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परीक्षा
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अभियांत्रिकी महाविद्यालय में प्रायोगिक परीक्षाएँ चल रहीं हैं। कक्षा में विद्यार्थियों का झुण्ड अपनी प्रयोग पुस्तिका, किताबों, कैलकुलेटर तथा चलभाष आदि से सुसज्जित होकर होकर रणक्षेत्र में करतब दिखा रहा है। एक अन्य कक्ष में गरमागरम नमकीन तथा मिष्ठान्न का स्वाद लेते परीक्षक तथा प्रभारी मौखिक प्रश्नोत्तर कर रहे हैं जिसका छवि-अंकन निरंतर हो रहा है।
पर्यवेक्षक के नाते परीक्षार्थियों से पूछा कौन सा प्रयोग कर रहे हैं? कुछ ने उत्तर पुस्तिका से पढ़कर दिया, कुछ मौन रह गये। परिचय पत्र माँगने पर कुछ बाहर भागे और अपने बस्तों में से निकालकर लाये, कुछ की जेब में थे।जो बिना किसी परिचय पत्र के थे उन्हें परीक्षा नियंत्रक के कक्ष में अनुमति पत्र लेने भेजा। कुतूहलवश कुछ प्रयोग पुस्तिकाएँ उठाकर देखीं किसी में नाम अंकित नहीं था, कोई अन्य महाविद्यालय के नाम से सुसज्जित थीं, किसी में जाँचने के चिन्ह या जाँचकर्ता के हस्ताक्षर नहीं मिले।
प्रभारी से चर्चा में उत्तर मिला 'दस हजार वेतन में जैसा पढ़ाया जा सकता है वैसा ही पढ़ाया गया है. ये पाठ्य पुस्तकों नहीं कुंजियों से पढ़ते हैं, अंग्रेजी इन्हें आती नहीं है, हिंदी माध्यम है नहीं। शासन से प्राप्त छात्रवृत्ति के लोभ में पात्रता न होते हुए भी ये प्रवेश ले लेते हैं। प्रबंधन इन्हें प्रवेश न दे तो महाविद्यालय बंद हो जाए। हम इन्हें मदद कर उत्तीर्ण न करें तो हम पर अक्षमता का आरोप लग जाएगा। आप को तो कुछ दिनों पर्यवेक्षण कर चला जाना है, हमें यहीं काम करना है। आजकल विद्यार्थी नहीं प्राध्यापक की होती है परीक्षा कि वह अच्छा परिणाम देकर नौकरी बचा पाता है या नहीं?
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