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रविवार, 27 दिसंबर 2015

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एक रचना- 
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सल्ललाहो अलैहि वसल्लम
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सल्ललाहो अलैहि 
वसल्लम
क्षमा करें सबको 
हम हरदम 
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सब समान हैं, ऊँच न नीचा 
मिले ह्रदय बाँहों में भींचा 
अनुशासित रह करें इबादत 
ईश्वर सबसे बड़ी नियामत 
भुला अदावत, क्षमा दान कर
द्वेष-दुश्मनी का 
मेटें तम 
सल्ललाहो अलैहि 
वसल्लम
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तू-मैं एक न दूजा कोई
भेदभाव कर दुनिया रोई 
करुणा, दया, भलाई, पढ़ाई 
कर जकात सुख पा ले भाई 
औरत-मर्द उसी के बंदे 
मिल पायें सुख 
भुला सकें गम
सल्ललाहो अलैहि 
वसल्लम
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ज्ञान सभ्यता, सत्य-हक़ीक़त
जगत न मिथ्या-झूठ-फजीहत 
ममता, समता, क्षमता पाकर 
राह मिलेगी, राह दिखाकर 
रंग- रूप, कद, दौलत, ताकत 
भुला प्रेम का 
थामें परचम 
सल्ललाहो अलैहि 
वसल्लम
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कब्ज़ा, सूद, इजारादारी
नस्लभेद घातक बीमारी 
कंकर-कंकर में है शंकर 
हर इंसां में है पैगंबर
स्वार्थ छोड़कर, करें भलाई 
ईशदूत बन 
संग चलें हम 
सल्ललाहो अलैहि 
वसल्लम
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