लघुकथा
गुलामी का अनुबंध
*
आप कैसे जनप्रतिनिधि हैं जो जनमत जानते हुए भी संसद में व्यक्त नहीं करते?
क्या करूँ मजबूर हूँ?
कैसी मजबूरी?
दल की नीति जनमत की विरोधी है. मैं दल का उम्मीदवार था, चुने जाने के बाद मुझे संसद में वही कहना पड़ेगा जो दल चाहता है.
अरे! तब तो दल का प्रत्याशी बनने का अर्थ बेदाम का गुलाम होना है, उम्मीदवार क्या हुए जैसे गुलामी का अनुबंध कर लिया हो.
***
2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर और सटीक ...
कैलाश जी धन्यवाद.
एक टिप्पणी भेजें