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बुधवार, 2 दिसंबर 2015

laghukatha

लघुकथा:
मुझे जीने दो
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कश्मीरी पंडितों पर आतंकी हमलों से उत्पन्न आँसुओं की बाढ़, नेताओं और प्रशासन की उपेक्षा से जमी बर्फ, युवाओं के आतंकी संगठनों से जुड़ने के ज्वालामुखी, सीमाओं पर रोज मुठभेड़ों और सिपाहियों की शहादत के भूकम्प तथा दूरदर्शनी निरर्थक बहसों के तूफ़ान के बीच घिरी असहाय लोकतांत्रिक प्रणाली असहाय बिटिया की तरह लगातार गुहार रही है मुझे जीने दो पर गूंगी जनता और बहरी संसद दोनों मजबूर हैं.
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