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सोमवार, 19 सितंबर 2011

दोहा सलिला: एक हुए दोहा यमक: -- संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
एक हुए दोहा यमक:
-- संजीव 'सलिल'
*
पानी-पानी हो रहे, पानी रहा न शेष.
जिन नयनों में- हो रही, उनकी लाज अशेष..
*
खैर रामकी जानकी, मना जानकी मौन.
जगजननी की व्यथा को, अनुमानेगा कौन?
*
तुलसी तुलसी-पत्र का, लगा रहे हैं भोग.
राम सिया मुस्का रहे, लख सुन्दर संयोग..
*
सूर सूर थे या नहीं, बात सकेगा कौन?
देख अदेखा लेख हैं, नैना भौंचक-मौन..
*
तिलक तिलक हैं हिंद के, उनसे शोभित भाल.
कह रहस्य हमसे गये, गीता का नरपाल..
*
सिलक पहनकर गिन रहीं, सिलक सिठानी आज.
लक्ष्मी को लक्ष्मी गहे, आप न पूछें राज..
*
राज राज के काज का, गोपनीय श्रीमान.
श्री वास्तव में पाये बिन, श्रीवास्तव श्री-वान..
*
दीक्षित दीक्षित हैं नहीं, पर दीक्षा दें नित्य.
विस्मित होकर देखता, नभ से 'सलिल' अनित्य..
*
चकित दीप्ति की दीप्ति से, दीपक करे सवाल.
भूल तेल को पूजता, जग क्यों केवल ज्वाल??
*
तेल लगाते तेल बिन, कैसा है यह खेल?
बिन नकेल ही नाक में, डालें आप नकेल..
*
हार रहे जो खेल में, गेंद न पाते झेल.
सजा मिले कविताओं को, सुनें-गुनें चुप झेल..
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

3 टिप्‍पणियां:

भूल तेल को पूजता, जग क्यों केवल ज्वाल?? ने कहा…

Mukesh Srivastava ✆

आचार्य जी
आपके ये दोहे भी अर्थ और भाव दोनों में अद्वीत्य हैं,फिलहाल इन दोहों ने ध्यान ज्यादा खींचा

राज राज के काज का,
गोपनीय श्रीमान
श्री वास्तव में पाये बिन,
श्रीवास्तव श्री-वान..
(श्रीमान जी, आप सही ही कहते हैं यह नाचीज़ बिना श्री के ही श्रीवास्तव हैं)

*
दीक्षित दीक्षित हैं नहीं,
पर दीक्षा दें नित्य.
विस्मित होकर देखता,
नभ से 'सलिल' अनित्य..
(दीक्षित जी के बारे में तो वही बता सकते हैं )

चकित दीप्ति की दीप्ति से,
दीपक करे सवाल.
भूल तेल को पूजता,
जग क्यों केवल ज्वाल??
(मेरे साथ ऐसी कोई भूल नहीं है, मै, तेल दीपक और ज्वाल तीनो से जो दीप्ति, दीपित होती है उसे पूजता हूँ)


खैर. एक बार पुनः दोहों के लिए बधाई स्वीकार करें

मुकेश इलाहाबादी

Navin C. Chaturvedi ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

हार रहे जो खेल में, गेंद न पाते झेल.
सजा मिले कविताओं को, सुनें-गुनें चुप झेल..

shar_j_n ✆ ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,

जगजननी की व्यथा को, अनुमानेगा कौन? --- अतिसुन्दर!
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तिलक तिलक हैं हिंद के, उनसे शोभित भाल.
कह रहस्य हमसे गये, गीता का नरपाल.. ---- ये तो कमाल कर दिया आचार्य जी! तिलक जी के गीता रहस्य पे लिखा है ना! वाह!

*
हार रहे जो खेल में, गेंद न पाते झेल.
सजा मिले कविताओं को, सुनें-गुनें चुप झेल.. --- :)
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सादर शार्दुला