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गुरुवार, 29 सितंबर 2011

रचना / प्रति रचना: परिचय --राकेश खंडेलवाल / सलिल

रचना / प्रति रचना:
परिचय 
राकेश खंडेलवाल / सलिल
*
बस इतना है परिचय मेरा
भाषाओं से कटा हुआ मैं
हो न सका अभिव्यक्त गणित वह
गये नियम प्रतिपादित सब ढह
अनचाहे ही समीकरण से जिसके प्रतिपल घटा हुआ मैं
जीवन की चौसर पर साँसों के हिस्से कर बँटा हुआ मैं
बस इतना है परिचय मेरा
इक गंतव्यहीन यायावर
अन्त नहीं जिसका कोई, पथ
नीड़ नहीं ना छाया को वट
ताने क्रुद्ध हुए सूरज की किरणों की इक छतरी सर पर
चला तोड़ मन की सीमायें, खंड खंड सुधि का दर्पण कर
बस इतना है परिचय मेरा
सका नहीं जो हो परिभाषित
इक वक्तव्य स्वयं में उलझा
अवगुंठन जो कभी न सुलझा
हो पाया जो नहीं किसी भी शब्द कोश द्वारा अनुवादित
आधा लिखा एक वह अक्षर, जो हर बार हुआ सम्पादित
बस इतना है परिचय मेरा




*
प्रति रचना :
_परिचय:
संजीव 'सलिल'
*
बस इतना परिचय काफी है...
*
परिचय के मुहताज नहीं तुम.
हो न सके हो चाह कभी गुम.
तुमसे नियमों की सार्थकता-
तुम बिन वाचा होती गुमसुम.
तुम बिन दुनिया नाकाफी है...
*
भाषा-भूषा, देश-काल के,
सर्जक, ध्वंसक व्याल-जाल के.
मंजिल सार्थक होती तुमसे-
स्वेद-बिंदु शुचि काल-भाल के.
समय चाहता खुद माफी है.....
*
तुमको सच से अलग न पाया.
अनहद भी निज स्वर में गाया.
सत-चित-आनंद, सत-शिव-सुंदर -
साथ लिये फिरते सरमाया.
धूल पाँव की गद्दाफी है...
*

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