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मंगलवार, 20 सितंबर 2011

सामयिक रचना: मनमोहना बड़े झूठे... --संजीव 'सलिल'

सामयिक रचना:                                                                            
मनमोहना बड़े झूठे...
--- संजीव 'सलिल'
*
सरल सहज सज्जन दिखते थे,
इसीलिये हम ठगा गये हैं.
आँख मूँदकर किया भरोसा -
पर वे ठेंगा दिखा गये हैं..
हरियाली बोई पा ठूंठे...
*
ओबामा के मन भाये हैं.
सोच-सोचकर इतराये हैं.
कौन बताये इन्हें आइना-
ममता बिन ढाका धाये हैं.
बंधे सोनिया खूंटे...
*
अर्थशास्त्री कहे गये हैं.
अनर्थशास्त्री हमें लगे हैं.
मंहगाई से नयन लड़ाये-
घोटालों के प्रेम पगे हैं.
अन्ना से हैं रूठे...
*

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

5 टिप्‍पणियां:

vijay2@comcast.net ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आ० संजीव जी,

अच्छी मनोरंजक रचना है।
आपकी सभी रचनाएँ मन को भा जाती हैं...

विजय निकोर

- ksantosh_45@yahoo.co.in ने कहा…

वाह सलिल जी,
क्या व्यंग्य है,
अर्थशास्त्री से अनर्थशास्त्री बन गए मनमोहन।
बधाई।
सन्तोष कुमार सिंह

santosh bhauwala ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी ,
मनमोहक रचना
साधुवाद !!
सादर
संतोष भाऊवाला

Navin C. Chaturvedi ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

ममता बिन ढाका धाये हैं.
बंधे सोनिया खूंटे...

फिर से हंसा दिया आचार्य जी
जय हो

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आ० आचार्य जी,
आपकी कलम तो तलवार का भी काम करती है | मजा आ गया यह सामयिक रचना पढ़ कर |
विशेष कर गीत के अंतिम दोनों बंद कमाल के है | साधुवाद |
सादर
कमल