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अलस्सुबह मन-दर्पण देखा, श्वास-श्वास घनश्याम हो गयी.
जब नयनों से नयन मिलाये, आस-आस सुख-धाम हो गयी..
अँजुरी भर जल से मुँह धोकर, उषा थपकती मन के द्वारे.
तुहिन बिंदु सज्जित अनूप-छवि, सुंदरता निष्काम हो गयी..
नर्तित होती रवि किरणों ने, सलिल-लहरियों में अवगाहा.
सतत साधना-दीप लिये वंदना विमल आयाम हो गयी..
ज्ञान-परिश्रम-प्रेम त्रिवेणी, नेह नर्मदा हुई निनादित.
कंकर-कंकर को शंकर कर, दुपहरिया बेनाम हो गयी..
सांध्य-अर्चना के निर्मल पल, कलकल निर्झर ध्वनि संप्राणित.
नीराजन कर लिये नीरजा, मूंदे नयन अनाम हो गयी..
सब संकल्प-विकल्प परखकर, श्रांत-क्लांत पग ठिठक थम गये.
अंतर से अंतर तज अंतर्वीणा विनत प्रणाम हो गयी..
काट-काट कर्मों की कारा, सुध बेसुध हो मौन हुई तो-
काम-कुसुम निष्काम हो गये, राका पूरनकाम हो गयी..
शशि-नभ शशिवदनी-शशीश सम, अभयदान दे रहे मौन रह.
थी जैसी जितनी जिजीविषा, जिसकी वह अंजाम हो गयी..
मन्वन्तर ने अभ्यंतर में, आत्म प्रकाशित होते पाया.
मृण्मय 'सलिल' न थक-रुक, झुक-चुक, बूँद-बूँद परमात्म हो गयी..
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Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
2 टिप्पणियां:
आ० आचार्य जी,
मुक्तिकाओं ने मन मुग्ध कर दिया | आपकी लेखनी को बारम्बार नमन |
भाव-विभोर कर गईं ये -
ज्ञान-परिश्रम-प्रेम त्रिवेणी,
नेह नर्मदा हुई निनादित.
कंकर-कंकर को शंकर कर,
दुपहरिया बेनाम हो गयी..
सांध्य-अर्चना के निर्मल पल,
कलकल निर्झर ध्वनि संप्राणित.
नीराजन कर लिये नीरजा,
मूंदे नयन अनाम हो गयी..
कमल
priy sanjiv ji
aapki muktikayein man ko mugdh kar deti hain bahut sundar bahut hi sundar maa saraswati ne aapko ashirwad diya hai
kusum
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