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सोमवार, 12 सितंबर 2011

दोहा ग़ज़ल: वामांगी वंदना --संजीव 'सलिल'

दोहा ग़ज़ल:                                                              वामांगी वंदना
संजीव 'सलिल'
*
वामांगी को कर नमन, रहो सुरक्षित यार.
सुर-नर सह सकते नहीं वामांगी  के वार..
*
आप अगर मधुकर बनें, वामांगी  मधु-प्यार.
सुखमय हो जीवन जगत, दस दिश खिले बहार..
*
वामांगी सुख-शांति है, वामांगी  घर-द्वार.
अमलतास हों आप यदि, वामांगी  कचनार..
*
उषा, दिवस, संध्या, निशा, प्रति पल नवल निखार.
हर ऋतु भावन लगे, लख वामांगी-सिंगार..
*
हिम्मत, बल, साधन चुके, कभी न वह भण्डार.
संकट में संबल सुदृढ़, वामांगी सुकुमार..
*
दुर्गा लक्ष्मी शारदा, बल-धन-ज्ञान अपार.
वामांगी चैतन्य चित, महिमा अपरम्पार..
*
माँ, बहिना, भाभी, सखी, साली, सुता निहार.
वामांगी में वास है, सबका लख सहकार..
*
गीत, गजल, दोहा मधुर, अलंकार रस-धार.
नेह निनादित नर्मदा, वामांगी साकार..
*
हाथ-हाथ में, साथ पग, रख चलती हर बार.
वामांगी सच मानिये, शक्ति-मुक्ति आगार..
*
कर वामांगी वंदना, रावण मारें राम.
नरकासुर वध करें मिल, वामांगी-घनश्याम..
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15 टिप्‍पणियां:

mukku41@yahoo.com ekavita ने कहा…

Mukesh Srivastava ✆
आचार्य जी,
बहुत सुन्दर,
बस इसी दोहे की कमी रह गयी थी,
यह वामांगी वंदना, जो नर पढ़े बारम्बार
उस नर के घर आवे, सुख समृधि अपार
सादर

मुकेश इलाहाबादी

deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आदरणीय कविवर -
इस सुन्दर वंदना के लिए आपका ह्रदय से आभार....!
कौन नारी खुश न होगी आपके इतने भक्ति-भाव भरे दोहे पढ़कर !

achal verma ✆ ekavita ने कहा…

माननीय आचार्य जी ,
बहुत सुन्दर रचना :
एकस्वर मेरा भी मिलालें ::

वामांगी की जय बोलें , तो खुशियाँ बढ़ें दिन रात
वामांगी यदि खुश रहें तो , जीवन एक सौगात |

अचल वर्मा

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आ० आचार्य जी ,
आपकी लेखनी के चमत्कार को फिर नमन !
सादर
कमल

- ksantosh_45@yahoo.co.in ने कहा…

आ० सलिल जी
माँ शारदे की अति कृपा है आप पर।
बहुत सुन्दर लिखते हैं।
साधुवाद।
सन्तोष कुमार सिंह
मथुरा

Amitabh Tripathi ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,

वामांगी महिमा करके आपने पर्याप्त पुण्य अर्जन कर लिया है| साधुवाद!

पुरश्चरण में एक आहुति मेरी ओर से भी.....

वामांगी चपला बिना, जलद न करते वृष्टि
वामांगी पर ही टिकी, विधि हरि हर की सृष्टि
सादर
अमित
अमिताभ त्रिपाठी

dks poet ✆ ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,
आपकी लेखनी को नमन।
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

shriprakash shukla ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,
एक उत्कृष्ट रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें | आदरणीय अमिताभ जी, अचल जी एवं मुकेश जी की आहूतियां भी सराहनीय हैं और बधाई की पात्र हैं |
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल

Dr.M.C. Gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

सलिल जी,

सुंदर विचार हैं.

एक मेरी ओर से भी--

पत्नी को खुश राखिए कभी न कीजे चूक

मुँह से गर कुछ न कहे, मत समझो है मूक


--ख़लिश

sanjiv 'salil' ने कहा…

नील कमल वामांगिनी, अचल हृदय का कोष.
देखे दीप्ति महेश की, करे 'सलिल' संतोष.

श्री प्रकाश की दीप्ति से, वामांगी अमिताभ.
श्री वास्तव श्रीमुखी, लख सज्जन अजिताभ..

आप सबका आभार..

santosh bhauwala ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी ,
मन मुग्ध हो गया !!
वामांगी को कर रहे आचार्य जी आज नमन
देख उनकी महानता हम सब करें उन्हें नमन
सादर संतोष भाऊवाला

sa ने कहा…

वामांगी बिन हो नहीं, दक्षिणांग सम्पूर्ण.
दोनों मिलकर सृष्टि रच, होते हैं परिपूर्ण..

माटी माटी से मिले, ले माटी आकार.
करते खुद परब्रम्ह भी, वामांगी-व्यापार..

दो अपूर्ण मिल पूर्ण हों, मिटा आपसी द्वैत.
देती परमानन्द वर, वामांगी अद्वैत..

मिटाता भेद, अभेद ही, रह जाता जब शेष.
वामांगी संतोष कर, देती खुशी अशेष..

पंचतत्व वामांग है, जीवन का आधार.
पंचतत्व दायांग है, स्वप्नों का स्वीकार..

- drdeepti25@yahoo.co.in ने कहा…

संजीव जी,
अभी आपकी वामांगी वन्दना कब तक चलेगी....?
भाभी जी बहुत भाग्यशाली हैं और आप धन्य हैं !
शत शत नमन के साथ,
दीप्ति

sanjiv 'salil' ने कहा…

दीप्ति जी!
यह तो जीवन पर्यंत चलने वाला अनुष्ठान है... साथ ही साथ दीप्ति वंदन भी चल ही रहा है. धन्यता तो मुझे ई कविता परिवार का सत्संग पाकर अनुभव हो रही है.

dks poet ✆ ekavita ने कहा…

आदरणीय सलिल जी,
अच्छे लगे वामांगी को समर्पित ये दोहे,
बधाई स्वीकार करें
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’