एक गीत:
शेष है...
संजीव 'सलिल'
*
किरण आशा की
अभी भी शेष है...
*
देखकर छाया न सोचें
उजाला ही खो गया है.
टूटता सपना नयी आशाएँ
मन में बो गया है.
हताशा कहती है इतना
सदाशा भी लेश है...
*
भ्रष्ट है आचार तो क्या?
सोच है-विचार है.
माटी का तन निर्बल
दैव का आगार है.
कालिमा अमावसी में
लालिमा अशेष है...
*
कुछ न कहीं खोया है
विधि-हरि-हर हम में हैं.
शारदा, रमा, दुर्गा
दीप अगिन तम में हैं.
आशत स्वयं में ही
चाहिए विशेष है...
***
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
शेष है...
संजीव 'सलिल'
*
किरण आशा की
अभी भी शेष है...
*
देखकर छाया न सोचें
उजाला ही खो गया है.
टूटता सपना नयी आशाएँ
मन में बो गया है.
हताशा कहती है इतना
सदाशा भी लेश है...
*
भ्रष्ट है आचार तो क्या?
सोच है-विचार है.
माटी का तन निर्बल
दैव का आगार है.
कालिमा अमावसी में
लालिमा अशेष है...
*
कुछ न कहीं खोया है
विधि-हरि-हर हम में हैं.
शारदा, रमा, दुर्गा
दीप अगिन तम में हैं.
आशत स्वयं में ही
चाहिए विशेष है...
***
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
3 टिप्पणियां:
धन्य है आचार्य जी ,
आपकी ही कलम का कमाल है कि-
" कालिमा अमावसी में
लालिमा अशेष है... "
इतना सुन्दर सहज साहस बंधाने वाला
उपमान ऐसा अनूठा प्रयोग पढ़ कर मुग्ध हूँ |
कमल
vijay2@comcast.net ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita
आ० संजीव सलिल जी,
अति सुन्दर
विजय निकोर
वर्षा जी, नवीन जी, डॉ. व्योम जी
आपका आभार शत-शत.
सभी से अनुरोध:
कृपया, 'अगुआ' के स्थान पर 'फगुआ' पढ़ें..
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