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शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

एक गीत: शेष है... --संजीव 'सलिल'

एक गीत:
शेष है...
संजीव 'सलिल'
*
किरण आशा की
अभी भी शेष है...
*
देखकर छाया न सोचें
उजाला ही खो गया है.
टूटता सपना नयी आशाएँ
मन में बो गया है.
हताशा कहती है इतना
सदाशा भी लेश है...
*
भ्रष्ट है आचार तो क्या?
सोच है-विचार है.
माटी का तन निर्बल
दैव का आगार है.
कालिमा अमावसी में
लालिमा अशेष है...
*
कुछ न कहीं खोया है
विधि-हरि-हर हम में हैं.
शारदा, रमा, दुर्गा
दीप अगिन तम में हैं.
आशत स्वयं में ही
चाहिए विशेष है...
***
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

3 टिप्‍पणियां:

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

धन्य है आचार्य जी ,
आपकी ही कलम का कमाल है कि-
" कालिमा अमावसी में
लालिमा अशेष है... "
इतना सुन्दर सहज साहस बंधाने वाला
उपमान ऐसा अनूठा प्रयोग पढ़ कर मुग्ध हूँ |
कमल

vijay2@comcast.net ने कहा…

vijay2@comcast.net ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita

आ० संजीव सलिल जी,

अति सुन्दर

विजय निकोर

sanjiv 'salil' ने कहा…

वर्षा जी, नवीन जी, डॉ. व्योम जी

आपका आभार शत-शत.

सभी से अनुरोध:
कृपया, 'अगुआ' के स्थान पर 'फगुआ' पढ़ें..