नवगीत
हवा में ठंडक...
संजीव 'सलिल'
*
हवा में ठंडक
बहुत है...
काँपता है
गात सारा
ठिठुरता
सूरज बिचारा.
ओस-पाला
नाचते हैं-
हौसलों को
आँकते हैं.
युवा में खुंदक
बहुत है...
गर्मजोशी
चुक न पाए,
पग उठा जो
रुक न पाए.
शेष चिंगारी
अभी भी-
ज्वलित अग्यारी
अभी भी.
दुआ दुःख-भंजक
बहुत है...
हवा
बर्फीली-विषैली,
नफरतों के
साथ फैली.
भेद मत के
सह सकें हँस-
एक मन हो
रह सकें हँस.
स्नेह सुख-वर्धक
बहुत है...
चिमनियों का
धुँआ गंदा
सियासत है
स्वार्थ-फंदा.
उठो! जन-गण
को जगाएँ-
सृजन की
डफली बजाएँ.
चुनौती घातक
बहुत है...
नियामक हम
आत्म के हों,
उपासक
परमात्म के हों.
तिमिर में
भास्कर प्रखर हों-
मौन में
वाणी मुखर हों.
साधना ऊष्मक
बहुत है...
**********
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
हवा में ठंडक...
संजीव 'सलिल'
*
हवा में ठंडक
बहुत है...
काँपता है
गात सारा
ठिठुरता
सूरज बिचारा.
ओस-पाला
नाचते हैं-
हौसलों को
आँकते हैं.
युवा में खुंदक
बहुत है...
गर्मजोशी
चुक न पाए,
पग उठा जो
रुक न पाए.
शेष चिंगारी
अभी भी-
ज्वलित अग्यारी
अभी भी.
दुआ दुःख-भंजक
बहुत है...
हवा
बर्फीली-विषैली,
नफरतों के
साथ फैली.
भेद मत के
सह सकें हँस-
एक मन हो
रह सकें हँस.
स्नेह सुख-वर्धक
बहुत है...
चिमनियों का
धुँआ गंदा
सियासत है
स्वार्थ-फंदा.
उठो! जन-गण
को जगाएँ-
सृजन की
डफली बजाएँ.
चुनौती घातक
बहुत है...
नियामक हम
आत्म के हों,
उपासक
परमात्म के हों.
तिमिर में
भास्कर प्रखर हों-
मौन में
वाणी मुखर हों.
साधना ऊष्मक
बहुत है...
**********
Acharya Sanjiv Salil
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3 टिप्पणियां:
आदरणीय आचार्य जी
नवगीत बहुत अच्छा लगा,
बर्फीली हवा में चिगारी जलाने की ज़रुरत है
रेखा
आ. आचार्य जी,
बदलते परिवेश का चित्रण बहुत सुन्दर लगा |
हमारे वहां तो अब ठंढ सचमुच ही शुरू हो गया है ,
क्या वहां भी अबकी जल्दी ठंडक उतर आई है ?
धन्यवाद.
अचल हो सीमा सृजन की.
सचल हो रेखा मनन की.
पैर भू पर हों जमाये-
नित नवल गाथा नयन की.
यत्न यशवर्षक बहुत है...
***
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
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