एक हुए दोहा यमक:
संजीव 'सलिल'
*
लिए विरासत गंग की, चलो नहायें गंग.
भंग न हो सपना 'सलिल', घोंटें-खायें भंग..
*
सुबह शुबह में फर्क है, सकल शकल में फर्क.
उच्चारण में फर्क से, होता तर्क कु-तर्क..
*
बुला कहा आ धार पर, तजा नहीं आधार.
निरा धार होकर हुआ, निराधार साधार..
*
ग्रहण किया आ भार तो, विहँस कहा आभार.
देय - अ-देय ग्रहण किया, तत्क्षण ही साभार..
*
नाप सके भू-चाल जो बना लिए हैं यंत्र.
नाप सके भूचाल जो, बना न पाए तंत्र..
*
शह देती है मात तो, राह भटकता लाल.
शह पाकर फिर मात पा, हुआ क्रोध से लाल..
*
दह न अगन में दहन कर, मन के सारे क्लेश.
लग न सृजन में लगन से, हर कर हर विद्वेष..
*
सकल स कल कर कार्य सब, स कल सकल मत देख.
अकल अ कल बिन अकल हो, मीन मेख मत लेख..
*
दान नहीं आदान है, होता दान प्रदान.
अगर कहा आ-दान तो, हो न निदान प्रदान..
*
जान बूझकर दे रही, जान आप पर जान.
जान बचाते फिर रहे, जान जान से जान..
*
एक खुशी मुश्किल हुई, सुलभ हुए शत रंज.
सारे सुख-दुःख भुलाकर, चल खेलें शतरंज..
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संजीव 'सलिल'
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लिए विरासत गंग की, चलो नहायें गंग.
भंग न हो सपना 'सलिल', घोंटें-खायें भंग..
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सुबह शुबह में फर्क है, सकल शकल में फर्क.
उच्चारण में फर्क से, होता तर्क कु-तर्क..
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बुला कहा आ धार पर, तजा नहीं आधार.
निरा धार होकर हुआ, निराधार साधार..
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ग्रहण किया आ भार तो, विहँस कहा आभार.
देय - अ-देय ग्रहण किया, तत्क्षण ही साभार..
*
नाप सके भू-चाल जो बना लिए हैं यंत्र.
नाप सके भूचाल जो, बना न पाए तंत्र..
*
शह देती है मात तो, राह भटकता लाल.
शह पाकर फिर मात पा, हुआ क्रोध से लाल..
*
दह न अगन में दहन कर, मन के सारे क्लेश.
लग न सृजन में लगन से, हर कर हर विद्वेष..
*
सकल स कल कर कार्य सब, स कल सकल मत देख.
अकल अ कल बिन अकल हो, मीन मेख मत लेख..
*
दान नहीं आदान है, होता दान प्रदान.
अगर कहा आ-दान तो, हो न निदान प्रदान..
*
जान बूझकर दे रही, जान आप पर जान.
जान बचाते फिर रहे, जान जान से जान..
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एक खुशी मुश्किल हुई, सुलभ हुए शत रंज.
सारे सुख-दुःख भुलाकर, चल खेलें शतरंज..
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6 टिप्पणियां:
आदरणीय आचार्य जी
प्रणाम ,
आपके यमक दोहों ने मुझे बहुत प्रेरित कियाI मै उन्हें बड़े शौक से रोज पढ़ रही थी, फिर अचानक मुझे भी कुछ सुझा और मैंने लिख दियाI
मुझे दोहों की ज्यादा जानकारी नहीं है, इसीलिए आपसे दरख्वास्त है कि यदि आपके पास कुछ समय हो तो, कृपया मुझे बताये कि क्या ये दोहे सही बने है या नहीं ?
आपका समय बहुत कीमती है फिर भी अगर थोडा सा समय निकाल पायें तो, आपकी बहुत बहुत आभारी रहूंगी I
धन्यवाद ,
सादर, संतोष भाऊवाला
हरहर गंगा में लगा डुबकी,मिटे हर एक का कष्ट
आज गया सो फिर ना आये, समय करो ना नष्ट
जीत का हार पहन नेता देश को ,कर रहे तार तार
समय बदलता सभी का क्या होगा, जब जायेंगे हार
पर फैलाए उड़ता जाए मन ,पागल आवारा
कोई भी रोक न पाए पर, कैसे हो ये गंवारा
चर चराचर जगत की ,माया है अनोखी
एक घाट चर रहे गज, बाग़, हिरन, पक्षी
पल पल बीता जा रहा नेनों में, पल रहा सपन साकार
ये दिन फिर ना आयेंगे मुट्ठी में, भर लो सकल संसार
हीरा पन्ना चमक रहे गले बीच महा रानी
हीरा पन्ना की कहानी सुनी लोगो की जुबानी
खडग की मार झेल ले आहत करे शब्दों के तीर
घायल मन को चैन मिले जाकर नदी के तीर
द्रौपदी की पुकार सुन कान्हा ने बढाया चीर
कौरव पांडवो के जुए ने रख दिया कलेजा चीर
शाब्दिक स्वतंत्रता और भाव उन्मुक्तता को सम्मान देते इन दोहों के लिये आपका सादर धन्यवाद आचार्यवर.
वैसे प्रत्येक दोहे संकलन योग्य और उदाहरण सदृश हैं जो साहित्यानुरागियों के साथ-साथ भाषा के विद्यार्थियों के लिये भी बेशकीमती हैं. दोहों से सार्थक और सारगर्भित अर्थ निस्सृत हुये हैं.
पुनश्च सादर अभिनन्दन.
आ० संजीव सलिल जी,
अति सुन्दर !
भाव बिना अभिनय विफल, खाओ न ज्यादा भाव.
ताव-चाव गुम हो गये, सुनकर ऊँचे भाव..
बधाई हो
विजय निकोर
आ० सलिल जी
मुग्ध कर देते हैं दोहे। संकलन योग्य हैं। बधाई।
सन्तोष कुमार सिंह
Bravo , Salil jee .
Highly recommended for higher studies .
Your's ,
Achal Verma
यमक पर बहुत सुन्दर संग्रह तैयार हो रहा है आदरणीय
एक यादगार संग्रह
नमन
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