नवगीत:
अपना हर पल है हिन्दीमय...
संजीव 'सलिल'
*
*
अपना हर पल है हिन्दीमय
एक दिवस क्या खाक मनाएँ?
बोलें-लिखें नित्य अंग्रेजी
जो वे एक दिवस जय गाएँ...
*
निज भाषा को कहते पिछडी.
पर भाषा उन्नत बतलाते.
घरवाली से आँख फेरकर
देख पडोसन को ललचाते.
ऐसों की जमात में बोलो,
हम कैसे शामिल हो जाएँ?...
*
हिंदी है दासों की बोली,
अंग्रेजी शासक की भाषा.
जिसकी ऐसी गलत सोच है,
उससे क्या पालें हम आशा?
इन जयचंदों की खातिर
हिंदीसुत पृथ्वीराज बन जाएँ...
*
शब्द-शब्द में माने जाते.
कुछ लिख, कुछ का कुछ पढ़ने की
रीत न हम हिंदी में पाते.
वैज्ञानिक लिपि, उच्चारण भी
शब्द-अर्थ में साम्य बताएँ...
*
अलंकार, रस, छंद बिम्ब,
शक्तियाँ शब्द की, बिम्ब अनूठे.
नहीं किसी भाषा में मिलते,
दावे करलें चाहे झूठे.
देश-विदेशों में हिन्दीभाषी
दिन-प्रतिदिन बढ़ते जाएँ...
*
भाषा हिंदी सबसे उत्तम.
सूक्ष्म और विस्तृत वर्णन में
हिंदी है सर्वाधिक सक्षम.
हिंदी भावी जग-वाणी है
निज आत्मा में 'सलिल' बसाएँ...
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5 टिप्पणियां:
सलिल जी,
कविता और भाव खरे हैं. एक बात समझ न आई--
अन्तरिक्ष में संप्रेषण की
भाषा हिंदी सबसे उत्तम.
--ख़लिश
हिंदी भावी जग-वाणी है
निज आत्मा में 'सलिल' बसाएँ...
शीघ्र आपकी ये वाणी
अब तेजी से सच कर दिखलायें
हममें अब संकल्प ये आये
कदम कभी ना पीछे जाएँ |
प्रान्त प्रान्त में सब के मन में
बात एक ही घर कर जाए
हम हिन्दुस्तानी हैं कहलाते
हिन्दी भाषी भी कहलायें ||
अचल वर्मा
आ० आचार्य जी,
दोनों कविताओं और प्रस्तुत चित्रों से अंतर्तम हिन्दीमय हो गया | मुग्ध हूँ |
' अन्तरिक्ष में सम्प्रेषण ' से आपका आशय संभवतः अंतर्जाल पर लोकप्रियता से है
जिसके माध्यम अन्तरिक्ष में स्थिर सैटेलाइट हैं |
सादर
कमल
Mukesh Srivastava ✆
आचार्य जी,
विचार, भावना और प्रस्तुतीकरण तीनो तरह से हिंदी के लिए
यह हिंदी की कविता भा गयी,
आपकी प्रतिभा को नमन
मुकेश इलाहाबादी
पूरा समर्थन है |
अवनीश तिवारी
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