शिक्षक दिवस पर:
कहाँ गया गुरु?...
संजीव 'सलिल'
*
गुरु था गंगा ज्ञान की, अब है गुरु घंटाल.
मेहनत चेलों से करा, खूब उड़ाये माल..
महागुरु बन हो गया, गुरु से संत महंत.
पीठाधीश बना- हुआ, गुरु-शुचिता का अंत..
चेले-चेली पालकर, किया बखेड़ा खूब.
कृष्ण स्वघोषित हो गया, राधाओं में डूब..
करी रासलीला हुआ, दस दिश में बदनाम.
शिक्षा लेना भूलकर, दे शिक्षा बेकाम..
शिक्षक करता चाकरी, चकरी सा नित घूम.
अफसर-चमचे मजे कर, रहे मचाते धूम..
दुश्चक्री फल-फूलकर, कहें सत्य को झूठ.
शिक्षा के रथचक्र की, थामे कर में मूठ..
आई.ए.एस. बन नियंता, नचा रहे दिन-रात.
नाच रहे अँगुलियों पर, शिक्षक पाकर मात..
टीचर टीच न कर हुए, सिर्फ फटीचर आज.
गुरु कह पग वंदन करें, कैसे आती लाज?
शब्दब्रम्ह के निकट जा, दें पुनि अक्षर-ज्ञान.
अभय बने जब शिष्य तब, देगा गुरु को मान..
हिंदी से रोजी जुटा, इंग्लिश लिखते रोज.
कोंवेंट बच्चे पढ़ें, क्यों? करिए कुछ खोज..
जूता पहने पूजते, सरस्वती बेशर्म.
नकल कराते, क्या नहीं, दण्डयोग्य दुष्कर्म?
मूल्यांकन करते गलत, देते गलत हिसाब.
श्वेत हो चुके बाल पर, मलकर रोज खिजाब..
कथनी-करनी में हुआ, अंतर जबसे व्याप्त.
तब से गुरुमुख से नहीं, मिला ज्ञान कुछ आप्त..
कहाँ गया गुरु? द्रोण से, पूछ रहा था कर्ण.
एकलव्य को देखकर, गुरु-मुख हुआ विवर्ण..
सत्ता का चाकर नहीं, होगा जब गुर मुक्त.
तब ही श्रृद्धा-आस्था, पुनि होगी संयुक्त..
कलम करे पगवन्दना, कहें योग्य है कौन?
प्रश्न रहा पुनि अनसुना, प्रभु-मूरत है मौन..
*******
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
कहाँ गया गुरु?...
संजीव 'सलिल'
*
गुरु था गंगा ज्ञान की, अब है गुरु घंटाल.
मेहनत चेलों से करा, खूब उड़ाये माल..
महागुरु बन हो गया, गुरु से संत महंत.
पीठाधीश बना- हुआ, गुरु-शुचिता का अंत..
चेले-चेली पालकर, किया बखेड़ा खूब.
कृष्ण स्वघोषित हो गया, राधाओं में डूब..
करी रासलीला हुआ, दस दिश में बदनाम.
शिक्षा लेना भूलकर, दे शिक्षा बेकाम..
शिक्षक करता चाकरी, चकरी सा नित घूम.
अफसर-चमचे मजे कर, रहे मचाते धूम..
दुश्चक्री फल-फूलकर, कहें सत्य को झूठ.
शिक्षा के रथचक्र की, थामे कर में मूठ..
आई.ए.एस. बन नियंता, नचा रहे दिन-रात.
नाच रहे अँगुलियों पर, शिक्षक पाकर मात..
टीचर टीच न कर हुए, सिर्फ फटीचर आज.
गुरु कह पग वंदन करें, कैसे आती लाज?
शब्दब्रम्ह के निकट जा, दें पुनि अक्षर-ज्ञान.
अभय बने जब शिष्य तब, देगा गुरु को मान..
हिंदी से रोजी जुटा, इंग्लिश लिखते रोज.
कोंवेंट बच्चे पढ़ें, क्यों? करिए कुछ खोज..
जूता पहने पूजते, सरस्वती बेशर्म.
नकल कराते, क्या नहीं, दण्डयोग्य दुष्कर्म?
मूल्यांकन करते गलत, देते गलत हिसाब.
श्वेत हो चुके बाल पर, मलकर रोज खिजाब..
कथनी-करनी में हुआ, अंतर जबसे व्याप्त.
तब से गुरुमुख से नहीं, मिला ज्ञान कुछ आप्त..
कहाँ गया गुरु? द्रोण से, पूछ रहा था कर्ण.
एकलव्य को देखकर, गुरु-मुख हुआ विवर्ण..
सत्ता का चाकर नहीं, होगा जब गुर मुक्त.
तब ही श्रृद्धा-आस्था, पुनि होगी संयुक्त..
कलम करे पगवन्दना, कहें योग्य है कौन?
प्रश्न रहा पुनि अनसुना, प्रभु-मूरत है मौन..
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Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
1 टिप्पणी:
आ० आचार्य जी,
सत्य कहा ,साधुवाद !
गुरु मास्टर बन गये अब रहे न गौरव-खान
दूषित शिक्षा काल में खोई गुरु की पहचान
कमल
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