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सोमवार, 12 सितंबर 2011

हिंदी दोहा सलिला हिंदी प्रातः श्लोक है..... -- संजीव 'सलिल'

हिंदी दोहा सलिला
हिंदी प्रातः श्लोक है.....
-- संजीव 'सलिल'
*
हिंदी भारत भूमि के, जनगण को वरदान.
हिंदी से हिंद का, संभव है उत्थान..
*
संस्कृत की पौत्री प्रखर, प्राकृत-पुत्री शिष्ट.
उर्दू की प्रेमिल बहिन, हिंदी परम विशिष्ट..
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हिंदी आता माढ़िये, उर्दू मोयन डाल.
'सलिल' संस्कृत सान दे, पूड़ी बने कमाल..
*
ईंट बनें सब बोलियाँ, गारा भाषा नम्य.
भवन भव्य है हिंद का, हिंदी बसी प्रणम्य..
*
संस्कृत, पाली, प्राकृत, हिंदी उर्दू पाँच.
भाषा-बोली अन्य हैं, स्नेहिल बहने साँच..
*
सब भाषाएँ-बोलियाँ, सरस्वती के रूप.
स्नेह् पले, साहित्य हो, सार्थक सरस अनूप..
*
भाषा-बोली श्रेष्ठ हर, त्याज्य न कोई हेय.
सबसे सबको स्नेह ही, हो जीवन का ध्येय..
*
उपवन में कलरव करें, पंछी नित्य अनेक.
भाषाएँ हैं अलग पर, पलता स्नेह-विवेक..
*
भाषा बोलें कोई भी, किन्तु बोलिए शुद्ध.
दिल से दिल तक जा सके, बनकर प्रेम प्रबुद्ध..
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मौसी-चाची ले नहीं, सकतीं माँ का स्थान.
सिर-आँखों पर बिठा पर, उनको माँ मत मान..
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ज्ञान गगन में सोहाती, हिंदी बनकर सूर्य.
जनहित के संघर्ष में, है रणभेरी तूर्य..
*
हिंदी सजती भाल पे, भारत माँ के भव्य.
गौरव गाथा राष्ट्र की, जनवाणी यह दिव्य..
*
हिंदी भाषा-व्याकरण, है सटीक अरु शुद्ध.
कर सटीक अभिव्यक्तियाँ, पुजते रहे प्रबुद्ध..
*
हिंदी सबके माँ बसी, राजा प्रजा फकीर.
केशव देव रहीम घन, तुलसी सूर कबीर..
*
हिंदी प्रातः श्लोक है, दोपहरी में गीत.
संध्या वंदन-प्रार्थना, रात्रि प्रिया की प्रीत..
**************
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

7 टिप्‍पणियां:

achal verma ✆ ekavita ने कहा…

बहुत सुन्दर कहा है आपने :
भाषा कोई बोलिए , किन्तु बोलिए शुद्ध.

दिल से दिल तक जा सके, बनकर प्रेम प्रबुद्ध
अचल वर्मा

--- On Sun, 9/11/11

santosh bhauwala ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी ,

हिंदी पर इतने सुंदर दोहे लिखना,आपके ही बस में हैI
साधुवाद !!!
सादर संतोष भाऊवाला

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

धन्य है आचार्य जी,
मातृभाषा पर इन दोहों में आपने हिंदी के विस्तृत रूप, गुण और वर्चस्व का जो विवरण गागर में सागर जैसा भर दिया है वह अन्यत्र दुर्लभ है| कभी कभी सोचता हूँ कि आप सरस्वती -पुत्र नहीं स्वयं माँ शारदा का अवतार हैं| भाषा-विज्ञान पर इतना बड़ा अधिकार रखने वाले और काव्य-विधा के हर क्षेत्र के मर्मज्ञ ज्ञाता
तथा अद्वितीय रचना सामर्थ्य किसी मानव के बस की बात नहीं | कितना ओज रस
और माधुर्य भर दिया आपने इस हिंदी श्लोक में कि मन मुग्ध हो कर बार बार
दोहरा रहा है इस काल-जयी दोहे को -

हिंदी प्रातः श्लोक है, दोपहरी में गीत.
संध्या वंदन-प्रार्थना, रात्रि प्रिया की प्रीत..
आपको मेरा नमन
सादर
कमल

dks poet ✆ ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,
आपकी लेखनी को नमन करता हूँ। मैं लिखने बैठा था तो मुझसे एक भी दोहा न लिखा गया और आपने इतने सारे लिख दिए।
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

गूंगा जिस प्रकार स्वाद का वर्णन नहीं कर सकता, कुछ ऐसी दशा है मेरी इन दोहों को पढ़ कर। कहीं कहीं टंकण त्रुटियाँ रह गई हैं, उन पर थोड़ा ध्यान दे दें मान्यवर।

हिन्दी दिवस के मौक़े पर इस अनुपम सौगात के लिए कोटि-कोटि साधुवाद।

sanjiv 'salil' ने कहा…

सज्जन को संतोष हो, रख हिंदी से स्नेह.
अचल कमल सा सुदर्शन, 'सलिल' रहे मन-गेह..

sanjiv 'salil' ने कहा…

हिंदी नित्य नवीन है, पुरा-पुरातन मीत.
कल-अब-कल को साथ ले, बढ़ा रही है प्रीत..