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रविवार, 11 सितंबर 2011

मुक्तिका: प्रिय के नाम सुबह लिख दी... -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
प्रिय के नाम सुबह लिख दी...
संजीव 'सलिल'
*
प्रिय के नाम सुबह लिख दी है, प्रिय में भी बैठा रब है.
'सलिल' दिख रहा दूर, मगर वह तुझसे दूर हुआ कब है??

जब-जब तुझको हो प्रतीत यह, तेरा कुछ भी नहीं बचा.
तब-तब सच इतना ही होगा, रहा न शेष मिला सब है..

कल करना जो कभी न होगा, कब आया कल बतलाओ?
जो करना है आज करो- वह होता जो कि हुआ अब है..

राजा तो केवल चाकर है, जो चाकर वह राजा है.
चाकर का चाकर वह चाहे, जग जाने उसमें नब है..

दुनिया का क्या तौर-तरीकों की बंदी वह 'सलिल' रही.
जिसको उसकी चाह हुई, उसको कहते सब बेढब है..

****************
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

7 टिप्‍पणियां:

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आ० आचार्य जी,
सुन्दर मुक्तिकाएं ,भावपूर्ण भी | बधाई
विशेष-

दुनिया का क्या तौर-तरीकों की बंदी वह 'सलिल' रही.
जिसको उसकी चाह हुई, उसको कहते सब बेढब है..
कमल

dks poet ✆ ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,
बहुत सुंदर मुक्तिका है।
बधाई स्वीकार करें।
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

kusum sinha ✆ ekavita ने कहा…

priy sanjiv ji

aapki kavitva pratibha ko shat shat naman

kusum

achal verma ✆ ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी ,

"कल करना जो कभी न होगा, कब आया कल बतलाओ?
जो करना है आज करो- वह होता जो कि हुआ अब है.."

कल ही तो आया था वो कल , फिर से कल वो आयेगा
कल ना लेने देगा ये कल , कल-कल कर बह जाएगा
कल की कल देखी जायेगी , आज समय कुछ है बाकी
कितने कल आये जायेंगे , आज पिला दो तुम साकी ||


अचल वर्मा

--- On Sun, 9/11/11

sanjiv 'salil' ने कहा…

कल का दास बना मानव तो, कल-पुर्जों सा हो बेजान.
बेकल होना अगर न चाहे, तो कलरव कर गाये गान..
अचल न कल है, अटल न कल है, आना-जाना ही जीवन
कलकल किलकिल हो न कभी,खिलखिल महका दें जग उपवन..

- drdeepti25@yahoo.co.in ने कहा…

प्रेम सलिल में डूब रहे, खूब सलिल जी आप
इसी तरह डूबे रहे, दुआ हमारी आज!

sanjiv 'salil' ने कहा…

दीप्ति प्रेम की ज़िंदगी में भरती है रंग.
बिना प्रेम हो ज़िंदगी नीरस अरु बेरंग..