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विविधता ही सृष्टि के, निर्माण का आधार है. 'एक हों सब' धारणा यह, क्यों हमें स्वीकार है?
तुम रहो तुम, मैं रहूँ मैं, और हम सब साथ हों.
क्यों जरूरी हो कि गुड़-गोबर हमेशा साथ हों?
द्वैत रच अद्वैत से, उस ईश्वर ने यह कहा.
दूर माया से सकारण, सदा मायापति रहा..
मिले मोदक अलग ही, दो सिवइयां मुझको अलग.
अर्थ इसका यह नहीं कि, मन हमारे हों विलग..
अनेकता हो एकता, में- यही स्वीकार है.
तन नहीं मन का मिलन ही, हमारा त्यौहार है..
15 टिप्पणियां:
Sunilkumar Singh 5:04pm Sep 4
bahut badhia sanjiv jee yahi to hamare desh ki pahachan ha
भोजपुरिया सेवक
Gurdeep Singh Ahuja 7:42pm Sep 4
Salil jee ke kavitwa padh ke anand bha gayl.
बहुत बड़ी और सराहनीय बात कह दी आपने !
अनेकता हो एकता, में- यही स्वीकार है.
तन नहीं मन का मिलन ही, हमारा त्यौहार है.. बहुत खूब !
सादर,
दीप्ति
--- On Sun, 4/9/11
सुंदर भाव हैं, सलिल जी--
विविधता ही सृष्टि के, निर्माण का आधार है.
'एक हों सब' धारणा यह, क्यों हमें स्वीकार है?
द्वैत रच अद्वैत से, उस ईश्वर ने यह कहा.
दूर माया से सकारण, सदा मायापति रहा..
मिले मोदक अलग ही, दो सिवइयां मुझको अलग.
अर्थ इसका यह नहीं कि, मन हमारे हों विलग..
--ख़लिश
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(Ex)Prof. M C Gupta
MD (Medicine), MPH, LL.M.,
Advocate & Medico-legal Consultant
www.writing.com/authors/mcgupta44
आप सिरजें काव्य को तुकबन्दियां कुछ हम करें
इस विविधता से सभी साहित्य की गागर भरें
सादर
राकेश
बहुत बड़ी और सराहनीय बात कह दी आपने !
अनेकता हो एकता, में- यही स्वीकार है.
तन नहीं मन का मिलन ही, हमारा त्यौहार है.. बहुत खूब !
सादर,
दीप्ति
आप सिरजें काव्य को तुकबन्दियां कुछ हम करें
इस विविधता से सभी साहित्य की गागर भरें
सादर
राकेश
अनेकता हो एकता, में- यही स्वीकार है.
तन नहीं मन का मिलन ही, हमारा त्यौहार है..
बेहद खूबसूरत और अपने समय की आवाज़ है यह पोस्ट .
bahut jordaar kawita
//अनेकता हो एकता, में- यही स्वीकार है.
तन नहीं मन का मिलन ही, हमारा त्यौहार है..// yahee to saty hai aadarneey !
बहुत सुंदर रचना...सुंदर सन्देश ...बधाई...Sanjiv Verma 'salil' जी...!!
अनेकता में एकता, बहुत ही खुबसूरत काव्य कृत, आभार आदरणीय आचार्य जी |
EK ALAUKIK VICHAR,,, JO BILKUL SACHCH...
Lalita Palep 12:35pm Sep 6
EK ALAUKIK VICHAR,,, JO BILKUL SACHCH HAI,,,,'' ANEKTA HO EKTA MEIN, YAHI SWEEKAR HAI,,,'' '' MANN KA MILAN HI HAMARA TYOHAR HAI,,",,,,,,,,,,,!!!! BAHUT REALISTIC VICHAAR,,,,!!!
संजीव सलिल साहब
आप की कविता में गहराई है
अनेकता हो एकता, में- यही स्वीकार है.
तन नहीं मन का मिलन ही, हमारा त्यौहार है..
विविधता ही सृष्टि के निर्माण का आधार है .... द्वेत रच अद्वेत से ... बहुत सही कहा आपने .
Sep 6
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