कुल पेज दृश्य

रविवार, 18 सितंबर 2011

दोहा सलिला: दोहा के सँग यमक का रंग -- संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
दोहा के सँग यमक का रंग
-- संजीव 'सलिल'
*
खटिया खड़ी न हो अगर, क्यों रोये सरकार?
खटिया खड़ी न हो अगर,चुप सोये सरकार..
*
आँख दिखायी तो भगे,  सर पर रखकर टाँग.
आँख दिखायी तो रहे, फीस डॉक्टर माँग..
*
'माँग भरो ' सुन माँग यह, मजनू भागा दूर.
लैला ने झट कर दिया, लतभंजन भरपूर..
*
साजन सा जन कौन हो?, उस सा कोई न अन्य.
शेष न धर सजनी कहे, सजना 'सलिल' अनन्य..
*
जागना हमने कहा था, जाग ना उसने सुना.
चाहना उसने कहा तो, चाह ना हमने गुना..
*
सबकी है दरकार- हो, सबके दर पर कार.
दर पर कार न हो अगर, लगता सब बेकार..
*
असरदार सरदार बिन, असरहीन सरकार.
चाह रहा भारत मिले, असरकार सरदार..
*
दखल करे खल तो सखे,ऊखल से दो मार.
खल को खल में डाल दो, बट्टा हो हथियार..
*
देवर ने 'दे वर' कहा, भौजी दे वरदान.
कन्यादानी से कहे, विहँस 'गहो वर-दान..
*
मिला भाग से जो करो, उसके समुचित भाग.
गुणा-भाग क्यों कर रहे?, सुख जायेगा भाग..
*
सच कहने में कर रहे, क्यों तुम लाग-लपेट.
लाग लगाकर चोट कर, सारा ध्यान समेट..
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

3 टिप्‍पणियां:

- gautamrb03@yahoo.com ने कहा…

आ. आचार्य संजीव जी,

यमक दोहों के संग, इनमें गागर में सागर भी भरा है बहुत ही सुंदर और रटने योग्य |
आपको वधाई स्वीकार हो |
सादर- गौतम

shar_j_n ✆ ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्यजी,
मिला भाग से जो करो, उसके समुचित भाग.
गुणा-भाग क्यों कर रहे?, सुख जायेगा भाग..... बहुत भली सीख!
सादर शार्दुला

dks poet ✆ ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,
नमन आपकी काव्य प्रतिभा को।
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’