ग़ज़ल
मनु बेतखल्लुस, दिल्ली
जिसने थामा अम्बर को वो तुझे सहारा भी देगा,
जिसने नज़र अता की है, वो कोई नज़ारा भी देगा
छोड़ न यूँ उम्मीद का दामन, ऐसे भी मायूस न हो,
अभी छुपा है बेशक, पर वो कभी इशारा भी देगा
छोड़ अभी साहिल के सपने, मौजों से टकराता चल
यहीं हौसला नैया का, इक रोज किनारा भी देगा
दूर उफ़क से नज़र हटा मत, रात भले ये गहरी है
अंधियारों के बाद, वो तुझको सुबह का तारा भी देगा
देखे फ़कत सराब, मगर यूँ मूँद न तरसी आँखों को
प्यास का ये जज़्बा सहरा में, जल की धारा भी देगा
लाख मिटाए वक्त, तू अपनी कोशिश को जिंदा रखना,
हार का ये अपमान ही इक दिन, जीत का नारा भी देगा
साकी की नज़रें ही पीने वालों की तकदीरें हैं
करता है जो जाम फ़ना, वो जाम सहारा भी देगा
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