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रविवार, 15 मार्च 2009

नलिनीकांत के हाइकु गीत

नलिनीकांत के हाइकु गीत

तितली

तितली तुम
इन्द्रधनुषी रानी
रंग बिरंगी।

नाचा करतीं
ता-ता-थैया, तुम तो
भोंरे की संगी।

लाली फूलों की
मुस्कान कलियों की
तुम अप्सरी।

नीलाम्बरी हो
कभी हो पीताम्बरी
चंचला अरी।

क्षण यहाँ तो
क्षण वहां, आतीं न
हाथ में कभी।

भटक रही
सुरभि में, कैसी हो
चमक रही?

विवाहिता या
कुंवारी हो, बताती
क्यों न सुन्दरी?
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विलुप्त प्रजातियाँ

चहचहाती थीं
कितनी चिडियां
इस वन में।

गाते थे
गीत दल के दल पंछी ,
मधुवन में।

किंतु न रह
सके चैन से इस
प्रदूषण में।

फुर्र हो गए
जाने पंछी किधर
किस क्षण में?

विलुप्त ईन
प्रजातियाँ अनेक
संक्रमण में।

बढ़ी है संख्या
नर व बन्दर की
किंतु रण में।

प्रभु! विज्ञानं
नहीं, ज्ञान बढाओ
जन-जन में।
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फूल व बच्चे

क्यों लगते हैं
इतने प्यारे-प्यारे
फूल व बच्चे?

खिलखिलाना
हँसना, दोनों के
लगते सच्चे।

कलियों और
नन्हों के आधे बोल
मधुर कच्चे।

रूप माधुर्य
फूलों-बच्चों के कभी
न खाते गच्चे।

प्रभु क्या तुम्हीं
हो परम प्रसन्न
फूल व बच्चे?
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हाइकु काव्य

सबसे बड़ा
प्रश्न और उत्तर
मधुर मौन।

गाछ-गाछ के
पत्ते-पत्ते पर लिखा
प्रभु का पत्र।

सही शख्स को
मिलती है ज़िंदगी
मौत के बाद।

मुस्काया मुन्ना
तो खुशियों से भरा
आँचल माँ का।

बूंदों की चोट
tee पर, गोलियाँ ,
ज्यों पीठ पर।

मेघ मल्हार
गा रही रसवंती
वधु श्रावणी।

फूल बेचता
हूँ मैं taja, faav men
detaa khushboo।

लहरों का क्या?
विश्वास, किनारे को
मरता धक्का।

-अंदाल ७१३३२१, प बंगाल।

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