नलिनीकांत के हाइकु गीत
तितली
तितली तुम
इन्द्रधनुषी रानी
रंग बिरंगी।
नाचा करतीं
ता-ता-थैया, तुम तो
भोंरे की संगी।
लाली फूलों की
मुस्कान कलियों की
तुम अप्सरी।
नीलाम्बरी हो
कभी हो पीताम्बरी
चंचला अरी।
क्षण यहाँ तो
क्षण वहां, आतीं न
हाथ में कभी।
भटक रही
सुरभि में, कैसी हो
चमक रही?
विवाहिता या
कुंवारी हो, बताती
क्यों न सुन्दरी?
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विलुप्त प्रजातियाँ
चहचहाती थीं
कितनी चिडियां
इस वन में।
गाते थे
गीत दल के दल पंछी ,
मधुवन में।
किंतु न रह
सके चैन से इस
प्रदूषण में।
फुर्र हो गए
जाने पंछी किधर
किस क्षण में?
विलुप्त ईन
प्रजातियाँ अनेक
संक्रमण में।
बढ़ी है संख्या
नर व बन्दर की
किंतु रण में।
प्रभु! विज्ञानं
नहीं, ज्ञान बढाओ
जन-जन में।
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फूल व बच्चे
क्यों लगते हैं
इतने प्यारे-प्यारे
फूल व बच्चे?
खिलखिलाना
व हँसना, दोनों के
लगते सच्चे।
कलियों और
नन्हों के आधे बोल
मधुर कच्चे।
रूप माधुर्य
फूलों-बच्चों के कभी
न खाते गच्चे।
प्रभु क्या तुम्हीं
हो परम प्रसन्न
फूल व बच्चे?
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हाइकु काव्य
सबसे बड़ा
प्रश्न और उत्तर
मधुर मौन।
गाछ-गाछ के
पत्ते-पत्ते पर लिखा
प्रभु का पत्र।
सही शख्स को
मिलती है ज़िंदगी
मौत के बाद।
मुस्काया मुन्ना
तो खुशियों से भरा
आँचल माँ का।
बूंदों की चोट
tee पर, गोलियाँ ,
ज्यों पीठ पर।
मेघ मल्हार
गा रही रसवंती
वधु श्रावणी।
फूल बेचता
हूँ मैं taja, faav men
detaa khushboo।
लहरों का क्या?
विश्वास, किनारे को
मरता धक्का।
-अंदाल ७१३३२१, प बंगाल।
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