स्तुति:
नमन नर्मदा मातु...
आचार्य संजीव 'सलिल'
नमन नर्मदा मातु को, नित्य निनादित धार।
भव-भय-भंजन कर रहीं, कर भव सागर पार।
कर भव सागर पार, हरें दुःख सबके मैया।
जो डूबे हो पार, किनारे डूबे नैया।
कल-कल में अनहद सुनो, किल-किल का हो अंत।
अम्ल विमल निर्मल 'सलिल', व्यापे दिशा-दिगंत।
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1 टिप्पणी:
आचार्य संजीव 'सलिल', संपादक दिव्य नर्मदा
सरगम स्वर संगीत की, बही त्रिवेणी मीत.
रुची 'सलिल' को, और भी, सुदृढ़ बने यह रीत.
धन्यवाद शत आपको, करते रहें प्रयास.
दिग्-दिगंत तक कीर्ति की, फैले 'सलिल' सुवास
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