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शनिवार, 28 मार्च 2009

डॉ. श्यामानंद सरस्वती 'रौशन' के श्रेष्ठ दोहे

दोहे में अनिवार्य हैं, कथ्य-शिल्प-लय-छंद।
ज्यों गुलाब में रूप-रस। गंध और मकरंद॥

चार चाँद देगा लगा दोहों में लालित्य।
जिसमें कुछ लालित्य है, अमर वही साहित्य॥

दोहे में मात्रा गिरे, यह भारी अपराध।
यति-गति हो अपनी जगह, दोहा हो निर्बाध॥

चलते-चलते ही मिला, मुझको यह मंतव्य।
गन्ता भी हूँ मैं स्वयं, और स्वयं गंतव्य॥

टूट रहे हैं आजकल, उसके बने मकान।
खंडित-खंडित हो गए, क्या दिल क्या इन्सान॥

जितनी छोटी बात हो, उतना अधिक प्रभाव।
ले जाती उस पार है, ज्यों छोटी सी नाव॥

कैसा है गणतंत्र यह, कैसा है संयोग?
हंस यहाँ भूखा मरे, काग उडावे भोग॥

बहरों के इस गाव में क्या चुप्पी, क्या शोर।
ज्यों अंधों के गाव में, क्या रजनी, क्या भोर॥

जीवन भर पड़ता रहा, वह औरों के माथ।
उसकी बेटी के मगर, हुए न पीले हाथ॥

तेरे अजग विचार हैं, मेरे अलग विचार।
तू फैलता जा घृणा, मैं बाँटूंगा प्यार॥

शुद्ध कहाँ परिणाम हो, साधन अगर अशुद्ध।
साधन रखते शुद्ध जो, जानो उन्हें प्रबुद्ध॥

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