दोहे :
समय न होता है सगा, समय न होता गैर।
'सलिल' सभी की मांगता, है ईश्वर से खैर।
समय बड़ा बलवान है, चलें सम्हलकर मीत।
बैर न नाहक ही करें, बाँटें सबको प्रीत।
समय-समय पर कीजिये, यथा-उचित व्यवहार।
सदा न कोई जीतता, सदा न होती हार।
समय-समय की बात है, राजा होता रंक।
कभी रंक राजा बने, सदा रहें निश्शंक।
समय-समय का फेर है, आज धूप कल छाँव।
'सलिल' रह पर रख सदा, भटक न पायें पाँव।
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 22 मार्च 2009
दोहे समय 'सलिल'
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आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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