गुरु ...रघुवंश के संदर्भ में
प्रो. सी. बी . श्रीवास्तव "विदग्ध"
गुरु अर्थात अज्ञान के अंधकार को हटाकर ज्ञान के प्रकाश से पथ को आलोकित करने वाला , अर्थात समस्या का समाधान करने वाला या मार्ग दर्शन करने वाला ...जीवन को प्रकाशित करने वाला . विशेषतः अध्यात्म के क्षेत्र में .यही कारण है कि अतीत में गुरू का स्थान बहुत उँचा था .
गुरू को ईश्वर से प्रथम पूज्य मानने का कारण यही है कि वही ईश्वर का दर्शन कराता है . इसीलिये प्राचीन राजा महाराजाओ को गुरू के मार्गदर्शन का महत्व था और कठिनाई के समय समाधान का सहारा .
राजा दिलीप के संतान नहीं थी इसी लिये पुत्र की कामनापूर्ति हेतु वे गुरु से मिलकर कष्ट निवारण का उपाय जानने वन में गुरु के पास गये . गुरुवर ने उन्हें स्वर्ग लोक कामधेनु गाय की पुत्री नन्दिनी की सेवा करने की सलाह दी . निष्ठा पूर्वक वैसा करने पर राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई , ...... रघुवंश के संदर्भ में
अथाभ्यच्र्य विधातारं प्रयतौ पुत्रकाम्यया ।
तौ दंपती वसिष्ठस्य गुरोर्जग्मतुराश्रमम् ।।
ब्रह्म की कर अर्चना , रख मन में विश्वास
दोनो पति पत्नी गये गुरू वशिष्ठ के पास ।। 35।।सर्ग १
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 15 मार्च 2009
गुरु अर्थात अज्ञान के अंधकार को हटाकर ज्ञान के प्रकाश से पथ को आलोकित करने वलाप्रो. सी. बी . श्रीवास्तव "विदग्ध"
सामाजिक लेखन हेतु ११ वें रेड एण्ड व्हाईट पुरस्कार से सम्मानित .
"रामभरोसे", "कौआ कान ले गया" व्यंग संग्रहों ," आक्रोश" काव्य संग्रह ,"हिंदोस्तां हमारा " , "जादू शिक्षा का " नाटकों के माध्यम से अपने भीतर के रचनाकार की विवश अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का दुस्साहस ..हम तो बोलेंगे ही कोई सुने न सुने .
यह लेखन वैचारिक अंतर्द्वंद है ,मेरे जैसे लेखकों का जो अपना श्रम, समय व धन लगाकर भी सच को "सच" कहने का साहस तो कर रहे हैं ..इस युग में .
लेखकीय शोषण , व पाठकहीनता की स्थितियां हम सबसे छिपी नहीं है , पर समय रचनाकारो के इस सारस्वत यज्ञ की आहुतियों का मूल्यांकन करेगा इसी आशा और विश्वास के साथ ..
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1 टिप्पणी:
संस्कृत की कालजयी कृति रघुवंश के हिन्दी काव्यानुवाद को पढ़कर युवा रचनाकार हिन्दी की विरासत, अनुवाद कला के प्रभाव तथा वैशिष्ट्य से परिचितत हो सकेंगे. इस सारस्वत अनुष्ठान के लिए श्रेष्ठ-ज्येष्ठ कवी प्रो. विदग्ध तथा विवेक रंजन का आभार.
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