ऋतुराज बसंत
अवनीश तिवारी
जब धरती करवट लेती है ,
और अम्बर का जी भर देती है ,
जब गोरी पर नैन टिकती है ,
और बेचैनी में रैन कटती है ,
जब तन प्रेम रुधिर बहता है ,
और मन अस्थिर कर जाता है ,
जब छुअन , चुम्बन के दृश्य होते हैं,
और इर्द - गिर्द के परिदृश्य बदलते हैं,
जब प्रेम - पूर्ण ह्रदय इतराता है,
और प्रेम - रिक्त दिल पछताता है,
जब नव दुल्हन अक्सर हंसती है ,
और कुंवारी कोई तरसती है,
जब सारी सीमायें टूटती है,
और मिलन योजनायें बनती है,
जब गाँव के गाँव महकते है,
और शहर के शहर संवरते है,
तब ऋतुराज बसंत आता है,
और मधुमास, बहार दे जाता है
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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बुधवार, 18 मार्च 2009
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आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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