दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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सोमवार, 30 मार्च 2009
राष्ट्र वन्दना
मेरा आज नमन
प्रो. श्यामलाल उपाध्याय, कोलकाता
भारत! तेरी शक्ति चिरंतन, मेरा आज नमन.
देश-विरोधी दीमक बनकर, देश चाटते जाते.
धंधों में काला-सफ़ेद कर, मस्ती-मौज मानते.
कौन लादे इन तूफानों से?, कैसे राह बनाये?
कौन जुटाए सहस कैसे?, ऐसे मन के पाए.
चिंता बहुत अधिक हम करते, मानव अधिकारों की.
उन्हें खोज रखते सहेजकर, थाती व्यापारों की.
काश! कहीं चिंता होती, हैं क्या करणीय हमारे.
कभी नहीं कर्त्तव्य विमुख, होते ये प्राणि सारे.
शासन को है सदा अपेक्षा, बल की-अनुशासन की.
बिना विवेक और अनुशासन, कहाँ चली शासन की.
इव्घतन है विनाश का सूचक, घातक एक कुमंत्र.
नहें बचोगे अपनेको औ' अपना जनतंत्र.
बनकर तुम स्वायत्त देश को नहीं बचा पाओगे.
प्रेम, शांति, भ्रातत्व-bhav से दूर चले jaaoge.
एकनिष्ठ-निरपेक्ष राष्ट्र, संप्रभु-स्वायत्त रहेगा.
विघटन से बच, सार्वभौम सत्ता के भर सहेगा.
राष्ट्र सोच हो, राष्ट्र कर्म हो, राष्ट्र-धर्म सेवा हो.
जन-मन अर्पित राष्ट्र भाव हो, शांति-प्रेम-श्रद्धा हो.
नयी सोच के अंखुवे तनकर नए प्राण विकसायें.
अंधकार-निर्धनता-शोस्गन आप स्वयं सर जाएँ.
लो संकल्प उठाओ! खर्षर, अपने तन=मन-धन.
भारत तेरी भक्ति चिरंतन, मेरा आज नमन.
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आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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