दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
सोमवार, 30 मार्च 2009
गीत
वीर प्रसूता माँ के उदगार
डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी, बरेली
चलो, देश के काम आ गया, अपना प्यारा लाल...
जिसकी अर्थी ने जीवन का अर्थ हमें समझाया.
दुनिया के माया-जालों में कभी नहीं उलझाया.
जिसे तिरंगे में पाकर, उन्नत है मेरा भाल....
सीमा के उस प्रहरी ने मातृत्व सफल कर डाला.
मृत्युंजय बनकर जिसने सारा विषाद हर डाला.
अनुरागी नब गया उसी का, निष्ठुर चाहे काल...
बलिदानी सूत एक अकेला, बना मुझे वरदान.
सौंप गया है, भारत माँ को अमृतमय मुस्कान.
और पुत्र ऐसे पाकर हो, माता सदा निहाल...
वीर-प्रसूता रह्हों, सदा जब-जब मैं जीवन पाऊँ.
विदुला और कभी जीजाबाई बनकर हरषाऊँ.
हो बन्दूक खिलौना, उसकी वीरोचित हो चाल...
हर माँ अपने बालक को मानव बनना सिखलाये.
अर्थवान जीवन हो, ऐसा काम देश के आये.
रुद्र और दुर्गा सी सन्तति, करती सदा कमाल...
देश-धर्म पर मिटानेवाले ही जिंदा कहलाते हैं.
चट्टानों औ' गिरिश्रृंगों को, वे पल में दहलाते हैं.
हस शहीद के मेले पर, हृदयों में उठा, उबाल...
*****************************
चिप्पियाँ Labels:
भारत,
राष्ट्रीय गीत,
वीर प्रसूता,
शहीद
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें