कविता
समय ख़त्म
देवेन्द्र कुमार मिश्रा
खेल शुरू होने से पहले की
जिज्ञासा और तैयारी
चलते खेल पैर भरी
कोशिश जीतने की
दोनों पक्ष पसीने से तरबतर
भरपूर प्रयास
जी तोड़ कोशिश
दर्शक दीर्घ में बैठे
अपने-अपने खिलाड़ियों की
जीत के प्रति प्रार्थना
भरोसा और
हौसला अफजाई भी
जीत लक्ष्य है।
जीतना चाहते हैं दोंनों ही
पर
जीतता कोई एक ही है
किसी को तो हारना भी है।
कौन जीता?
अधिक मेहनती,
अधिक लगनवाला,
या किस्मतवाला?
जीत-हार न हो तब भी
सीटी बजी- खेल ख़त्म
समय तो सीमित ही है
समय ख़त्म...खेल ख़त्म...
ऐसे ही चलता है जीवन
खेलो..हारो...जीतो...
समय पर सब ख़त्म।
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शुक्रवार, 20 मार्च 2009
kavita samay khatm devendra mishra
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आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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