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बुधवार, 12 अगस्त 2020

शोध: रक्तस्राव रोके रेगिस्तानी काई

शोध:
रक्तस्राव रोके रेगिस्तानी काई : डॉ. मोनिका भटनागर बधाई
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अजमेर. थार के मरुस्थल में सहज उपलब्ध काई केवल ५-७ सेकंड में शरीर से बहानेवाले खून को रोककर प्राणरक्षा कर सकती है। डॉ. मोनिका भटनागर ने एस. डी. एम. विश्व विद्यालय अजमेर के शैवाल जैव ईंधन एवं जैव अनुसंधान केंद्र (एल्गी बायोफ्युअल एंड बायोमॉलीक्यूल सेंटर) में शोधकर जाना कि रेगिस्तान में सुलभ हरी नीली काई (टोलियापोथ्रिक्स टेनुईस और एनेबिना की ३ प्रजातियाँ) अपनी कोशिकाओं से १ लीटर घोल में ०. ग्राम से ३. ५ ग्राम तक शर्करा के बहुलक (पॉलीमर) छोड़ते हैंजो ५-७ सेकंड में खून का थक्का जमा देते हैं जबकि काँच पर खून जमने में १२ सेकंड लगते हैं।
डॉ. मोनिका भटनागर ने बताया कि इस अन्वेषण का प्रयोगकर अधिक खून बहने के कारन होनेवाली मौतें रोकी जा सकेंगी। घावों मई चिकित्सा में शुष्क मलहम-पट्टी (ड्रेसिंग) के स्थान पर अब नम मलहम-पट्टी होगी जो दर्द घटने के साथ घाव का निशान भी मिटाएगी। जयपुर की डॉ. वीणा शर्मा ने चूहों की त्वचा पर काई-बहुलकों से निर्मित पट्टी का प्रयोग कर प्रयोगकर देखा कि ७२ घंटों बाद भी कोई एलर्जिक प्रतिक्रिया नहीं हुई।चूहों के घाव ६ दिनों में बिना किसी निशान के भर गये जबकि एंटीबायोटिक ऑइंटमेंट लगाने पर घाव भरने में १० दिन लगे। इस खोज से मधुमेह (डायबिटीज) के मरीजों राहत मिलने के साथ घाव के निशाओं की प्लास्टिक सर्जरी करने से भी मुक्ति मिलेगी। इस खोज हेतु डॉ. मोनिका भटनागर एवं डॉ. वीणा शर्मा को बधाई।
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