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शुक्रवार, 28 अगस्त 2020

आत्म कथ्य

आत्म कथ्य : 
आत्म से साक्षात्कार का प्रयास और परमात्म की कृपा ही मेरे सारस्वत अनुष्ठानों का हेतु है। 'स्व' से 'सर्व' की साधना ही अभीष्ट है। इसीलिये सृजन सलिला किसी विधा विशेष तक सीमित नहीं है। गद्य-पद्य की प्रमुख विधाओं में लेखन के साथ अभियंता होने के नाते तकनीकी लेखन, हिंदी-अंग्रेजी के अतिरिक्त बुंदेली, बघेली, मालवी, निमाड़ी, छत्तीसगढ़ी, अवधी, बृज, भोजपुरी, गढ़वाली, नेपाली, सरायकी, हरयाणवी आदि में भी रचनाएँ की हैं। हिंदी के कल्पवृक्ष की जड़ें भारतीय भाषाएँ व बोलियाँ हैं, यह मानकर उनमें सृजन सेतु स्थापित करता रहा हूँ। कलम के गीत भक्ति गीत, लोकतंत्र का मक़बरा व मीत मेरे कविता संग्रह, काल हो संक्रांति का व सड़क पर गीत संग्रह, कुरुक्षेत्र गाथा खंड काव्य, प्रकाशित। २ लघुकथा संग्रह, २ गीत संग्रह, एक खंड काव्य, २ समीक्षा संग्रह, २ दोहा संग्रह, २ मुक्तिका संग्रह, २ मुक्तक संग्रह, २ हाइकू संग्रह, एक जनल छंद संग्रह, एक कुण्डलिया संग्रह, एक सवैया संग्रह तथा संस्कृत स्तोत्रों के हिंदी काव्यानुवाद प्रकाशनाधीन। 
हिंदी छंद कोष का कार्य प्रगति पर ३०० नए छंदों का सृजन। २० तकनीकी लेख हिंदी में। ६५ पुस्तकों की भूमिका, ४०० पुस्तकों की समीक्षा, १५ स्मारिकाओं, ६ पत्रिकाओं का सम्पादन करने के पश्चात् न्यूटन से सहमत हूँ कि ज्ञान के समुद्र के किनारे सीपी बटोर रहा हूँ और जय प्रकाश जी से भी कि मेरा जीवन खोये हुए अवसरों की  कहानी है, दुबारा जीने का अवसर मिले तो फिर इसे इसी तरह जीना चाहूँगा।   

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