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मंगलवार, 18 अगस्त 2020

मुकरी / कहमुकरी

मुकरी / कहमुकरी
पुनीता भारद्वाज भीलवाड़ा
जिसे देखकर मन हरषाए
घूम-घूम वह नाच दिखाए
लगता मुझको है​ चितचोर
का सखी साजन? ना सखी मोर 
*
मुझको कच्ची नींद जगाये।
रोज सुबह आवाज लगाये।
राह हेरता है मतवाला।
रे सखि साजन? ना सखी ग्वाला।।
*
बदन गठीला चौड़ी छाती ।
उसको मैं लिख भेजूँ पाती ।
लगता है मुझको मनमौजी ।
रे सखि साजन? ना सखी फौजी ।।
*
ताल पे अपनी हमें नचाए
हँसी-खुशी में साथ निभाए
प्यारे लागे उसके बोल
रे सखी साजन? ना सखी ढ़ोल ।।

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