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मंगलवार, 11 अगस्त 2020

दोहा सलिला

दोहा सलिला
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जाते-जाते बता दें, क्यों थे अब तक मौन?
सत्य छिपा पद पर रहे, स्वार्थी इन सा कौन??
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कुर्सी पाकर बंद थे, आज खुले हैं नैन.
हिम्मत दें भय-भीत को, रह पाए सुख-चैन.
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वे मीठा कह कर गए, मिला स्नेह-सम्मान.
ये कड़वा कह जा रहे, क्यों लादे अभिमान?
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कोयल-कौए ने कहे, मीठे-कडवे बोल.
कौन चाहता काग को?, कोयल है अनमोल.
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मोहन भोग मिले मगर, सके न काग सराह.
देख छीछड़े निकलती, बरबस मुँह से आह.
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फ़िक्र न खल की कीजिए, करे बात बेबात.
उसके न रात दिन, और नहीं दिन रात.
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जितनी सुन्दर कल्पना, उतना सुन्दर सत्य.
नैन नैन में जब बसें, दिखता नित्य अनित्य.
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salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४

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