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शनिवार, 27 जनवरी 2024

ज्ञानवापी, विश्वनाथ, नंदी, वाराणसी

ज्ञानवापी मस्जिद हिंदू मंदिर पर टिकी हुई है। पीछे की दीवार तो ज्यों की त्यों रखी गई है जिस पर मस्जिद का गुंबद टिका है! एक और बात, ऐसी मान्यता है की किसी भी शिव मंदिर में नंदी का मुख सदैव शिवलिंग की और होता है। मूल काशी विश्वनाथ मंदिर जब ध्वस्त किया गया तब नंदी जो मंदिर के बाहर मंदिर की ओर मुँह करके स्थापित था वह टूटने से बच गया। तब से यह नंदी अनवरत मस्जिद की ओर मुँह करके अपने स्वामी की प्रतीक्षा कर रहा है।

काशी विश्वनाथ मंदिर १२ ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख है। यह स्थान शिव और पार्वती का आदि स्थान है इसीलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है। इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है। कई इतिहासकारों ने ११ वी से १५ वी सदी के कालखंड में मंदिरों का वर्णन किया है और उसके विध्वंस की बातें भी लिखी हैं। इतिहासकारों के अनुसार इस प्राचीन मंदिर को ११९४ में तोड़ा गया था।


– मोहम्मद तुगलक (१३२५) के समकालिक जिनप्रभ सूरी ने ‘विविध कल्प तीर्थ’ ग्रंथ में लिखा है कि बाबा विश्वनाथ को देव क्षेत्र कहा जाता था।


– लेखक फ्यूहरर ने लिखा है कि फिरोजशाह तुगलक के समय कुछ बड़े मंदिर मस्जिद में परिवर्तित हुए थे। फ्यूहरर के दस्तावेजों को अयोध्या के मामले में अदालत ने संज्ञान में लिया था। इसे फिर से बनाया गया परंतु एक बार फिर इसे १४४७ में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया।


– १४६० में वाचस्पति ने अपनी पुस्तक ‘तीर्थ चिंतामणि’ में लिखा है कि अविमुक्तेश्वर और विशेश्वर एक ही लिंग है।


– इतिहासकार डॉ. ए.एस. भट्ट ने अपनी किताब ‘दान हारावली’ में लिखा है कि महाराजा टोडरमलकी सहायता से पं. नारायण भट्ट ने मंदिर का पुनर्निर्माण १५८५ में करवाया था। परंतु १६३२ में शाहजहाँ ने इसे तोड़ने के लिए सेना भेज दी परंतु हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण सेना काशी विश्वेश्वर मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो नहीं तोड़ सकी, काशी के ६३ अन्य मंदिर तोड़ दिए गए थे। इसके पश्चात १८ अप्रैल १६६९ को औरंगजेब ने एक आदेश जारी कर काशी विश्वेश्वर मंदिर ध्वस्त कर मूल मंदिर को ज्ञानवापी के विवादित ढाँचे में परिवर्तित कर दिया था।। औरंगजेब का यह आदेश कोलकाता की विश्वप्रसिद्ध एशियाटिक लाइब्रेरी में आज भी सुरक्षित है।

- साकी मुस्तइद खां की पुस्तक ‘मासीदे आलमगिरी’ में वर्णन है कि औरंगजेब के आदेश पर यहाँ का मंदिर तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई। २ सितंबर १६६९ को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी।

- १७५२ से १७८० के बीच मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया व मल्हारराव होलकर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए। ७ अगस्त १७७० को महादजी सिंधिया ने दिल्ली के बादशाह शाहआलम से मंदिर तोड़ने की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश भी जारी करा लिया था परंतु तब तक ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया था इसलिए मंदिर का पुनरुद्धार रुक गया। तत्पश्चात पुनः प्रयास कर वर्ष १७७७-१७८० में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा मूल मंदिर के निकट में नवीन मंदिर का निर्माण करवाया गया था। अहिल्याबाई होलकर ने आज के इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र लगवाया था। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहाँ विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई।

नंदी की गवाही पूर्ण हुई

मैं शिलादिपुत्र नंदी हूँ, सैकड़ों वर्ष से शीत, आतप, बरखा सहने के बाद एक बार मैंने महादेव से पूछा कि आप अपना त्रिशूल क्यों नही चलाते ? उन्होंने मुझे श्री राम कथा सुनाई और कहा, 'यदि प्रभु राम चाहते तो बिना फण के एक बाण से दशानन के दसों शीश समेत सम्पूर्ण लंका का विनाश कर देते, पर इससे सामान्य जन पर कोई प्रभाव नही पड़ता। राम और रावण की लड़ाई मात्र दो लोगों की लड़ाई नहीं थी बल्कि सामान्य जन में मर्यादा की पुन: स्थापना और अन्याय के विरुद्ध उन्हें उठ खड़े होने का साहस देने को थी।' राम कथा प्रत्येक संदेह को दूर कर देती है, मैं जान गया कि मेरे यहाँ होने का उद्देश्य क्या है। मैं यहाँ पर हुए अत्याचार की गवाही देने के लिए हूँ। भारत भूमि में निवास करने वाले लोगों में धर्म और सामर्थ्य के जागरण के लिए तप कर रहा हूँ।

मैं यहाँ सदियों से पड़ा हूँ, काशी धाम आने वाले सभी जन मुझे देखते हैं। मैं गवाह हूँ कि मेरे भोलेनाथ ज्ञानव्यापी तीर्थ के अधिष्ठाता हैं। मैं हर घड़ी, हर पल महादेव की ओर मुँह करके बता रहा हूँ कि मेरे भोलेबाबा यहीं हैं यहीं हैं। जम्बू द्वीप के प्रत्येक कोने से आने वाले सभी सनातनियों को बता रहा हूँ कि विश्वेश्वर यहीं हैं। सम्पूर्ण भरतखंड के एक एक व्यक्ति को मैं सदियों से इसी बात की गवाही दे रहा हूँ।

मैंने सुना है कि नए भारत के राजा ने यह पता लगाने का आदेश दिया है कि ज्ञानव्यापी तीर्थ का अध्यक्ष कौन है। धरती के विधि विशेषज्ञ विधाता का पता लगाने निकले हैं, यह सोच कर मैं मन ही मन महादेव की माया पर मुस्कुराता हूँ। भोलेनाथ जानते थे कि मेरी गवाही ही विधि व्यवस्था की आखिरी बात होगी, इसलिए मैं सैकड़ों साल से यहीं हूँ। जिस दिन मेरी प्रतीक्षा और मेरी गवाही प्रत्येक सनातनी की प्रतीक्षा और गवाही हो जायेगी उस दिन हर ज्ञानव्यापी को उसका देव मिल जाएगा। मेरी तरफ देखो, मैं साक्ष्य हूँ, प्रमाण हूँ, साक्षी हूँ कि ज्ञानव्यापी तीर्थ समेत समस्त लोक के एकमेव स्वामी महादेव हैं।

उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत

काशी की महत्ता को बताने की आवश्यकता नहीं है। काशी के बिना स्वयं शिव भी अधूरे हैं। इतने सारे आक्रमण व विध्वंस के पश्चात भी ना तो काशी व शिव को अलग किया जा सका ना ही काशी की महिमा को क्षति पहुँच सकी।
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