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सोमवार, 1 जनवरी 2024

सॉनेट, नया साल, नवगीत, अंक माहात्म्य, दोहा, लघुकथा, मुक्तिका,

सलिल सृजन १ जनवरी 
*
सॉनेट
नया साल
नया साल है, नया हाल हो, नई चाल चलना है,
बीती ताहि बिसार हमें लिखना है नई कहानी,
मन में जग पाए शिव शंकर, तन बन सके भवानी,
जाग उठें मिल सूर्य देव सम कर्मव्रती बनना है।
सबके सपने अपने हों ताना-बाना बुनना है,
मिलें स्नेह से बोलें साथी हम सब मीठी बानी,
छोड़ सकें जाने से पहले कोई कहीं निशानी,
अपनी कम कह औरों की हमको ज्यादा सुनना है।
अनिल अनल भू धरा सलिल सम ताल-मेल रख पाएँ,
नेह नर्मदा नित्य नहाएँ भुज भेंटें सब हिल-मिल,
अगली पीढ़ी को दे पाएँ नव मांगलिक विरासत।
श्रम सीकर की गंग बहाकर जग तारें तर जाएँ,
बंजर में भी नव आशा के सुमन सकें शत शत खिल,
रखें अधर पर हास करें हम नए साल का स्वागत।
१.१.२०२४
•••
सॉनेट
नया साल
दो हजार चौबीस स्वागत है, आ जाओ,
जो बीता सो बीता कुछ शुभ नया करो,
दर्द दूर कर, सबके मन में हर्ष भरो,
तिमिर दूरकर, नव उजास बनकर छाओ।
जन-गण को दे हर्ष झूम आल्हा गाओ,
जनमंगल की राह चलो, बिल्कुल न डरो,
आसमान छूती मंँहगाई, पर कतरो,
सपने हों साकार युक्ति कुछ बतलाओ,
आपदा विपदा युद्ध त्रास दे रहे मिटा,
शांति-राज कर दो हर जन को चैन मिले,
बजे बाँसुरी कान्हा की हो रास मधुर।
जिनके मन हैं मलिन, उन्हें दो कुचल हटा,
शत्रु देश के ढह जाएँ मजबूत किले,
सुख-संतोष सभी पाएँ सब सकें निखर।
३१-१२-२०२३
 •••
सोनेट 
कल-आज-कल  
*
जाने वाला राह बनाता आने वाला चलता है,
पलता है सपना आँखों में तब ही जब हम सोए हों, 
फसल काटता केवल वह ही जिसने बीजे बोए हों, 
उगता सूरज तब ही जब वह नित संझा में ढलता है। 
वह न पनपता जिसको सुख-सौभाग्य अन्य का खलता है,
मुस्कानों की कीमत जानें केवल वे जो रोए हों, 
अपनापन पाते हैं वे जो अपनेपन में खोए हों, 
लोहा हो फौलाद आग में तप जब कभी पिघलता है। 
कल कल करता निर्झर बहता कल पाता मन बैठ निकट, 
किलकिल करता जो हो बेकल उसमें सचमुच नहीं अकल,
दास न होना कल का मानव कल-पुर्जों का स्वामी बन। 
ठोकर मार न कंकर को तू शंकर उससे हुए प्रगट,
काट न जंगल खोद न पर्वत मिटा न नदी बचा ले जल, 
कल से कल को जोड़ आज तू होकर नम्र न नाहक तन।।   
३१.१२.२०२३  
***

गीत
उजास दे
*
नवल वर्ष के
प्रथम सूर्य की
प्रथम रश्मि
पल पल उजास दे।
गूँजे गौरैया का कलरव
सलिल-धार की घटे न कलकल
पवन सुनाए सन सन सन सन
हो न किसी कोने में किलकिल
नियति अधर को
मधुर हास दे।
सोते-जगते देखें सपने
मानें-तोड़ें जग के नपने
कोशिश कर कर थक जाएँ तो
लगें राम की माला जपने
पीर दर्द सह
झट हुलास दे।
लड़-मिलकर सँग रहना आए
कोई छिटककर दूर न जाए
गले मिल सकें, हाथ मिलाएँ
नयन नयन को नयन बसाए
अधर अधर को
नवल हास दे।
१-२-२०२३,१५•२३
•••
सॉनेट
बेधड़क
बेधड़क बात अपनी कही
कोई माने न माने सचाई
हो न जाती सुता सम पराई
संग श्वासा सी पल पल रही
पीर किसने किसी की गही?
मौज मस्ती में जग साथ था
कष्ट में झट तजा हाथ था
वेदना सब अकेले तही
रेणु सब अश्रुओं से बही
नेह की नर्मदा ना मिली
शेष है हर शिला अनधुली
माँग पूरी करी ना भरी
तुम उड़ाते भले हो हँसी
दिल में गहरे सचाई धँसी
संजीव
१-१-२०२३,४•३८
जबलपुर
●●●
सॉनेट
पग-धूल
ईश्वर! तारो दे पग-धूल
अंश तुम्हारा आया दर पर
जागो जागो जागो हरि हर
क्षमा करो मेरी सब भूल
पग मग पर चल पाते शूल
सुनकर भी अनसुना रुदन-स्वर
क्यों करते हो करुणा सागर
देख न देखी आँसू-झूल
क्या कर सकता भेंट अकिंचन?
अँजुरी में कुछ श्रद्धा-फूल
स्वीकारो यह ब्याज समूल
तरुण पथिक, हो मधुर कृपालु
आस टूटती दिखे न कूल
आकुल किंकर दो पग-धूल
संजीव
१-१-२०२३, ४•२०
जबलपुर
●●●
सॉनेट
*
नया साल है, नया हाल हो, चाल नई, 
आशा-अरमानों का सफर नया हो अब, 
अमरकंटकी सलिल सदा निर्मल हो सब,
याद न कर जो बीत गई सो बीत गई। 
बना सके तो बना सृजन की रीत नई,
जैसा था वैसा ही है इंसां-जग-रब,
किया न अब, साकार करेगा सपना कब?
पूरा पुरातन ही प्रतीत हो प्रीत गई। 
नया-पुराना चित-पट दो पहलू जैसे,
करवट बदले समय न जानें हम कैसे?
नहीं बदलते रहते जैसे के तैसे। 
जैसे भी हो पाना चाहें पद-पैसे,
समझ न पाते अकल बड़ी है या भैंसे?  
जैसा छह आओ हम-तुम हों वैसे।    
***
सॉनेट
जाड़ा आया है
*
ठिठुर रहे हैं मूल्य पुराने, जाड़ा आया है।
हाथ तापने आदर्शों को सुलगाया हमने।
स्वार्थ साधने सुविधाओं से फुसलाया हमने।।
जनमत क्रयकर अपना जयकारा लगवाया है।।
अंधभक्ति की ओढ़ रजाई, करते खाट खड़ी।
सरहद पर संकट के बादल, संसद एक नहीं।
जंगल पर्वत नदी मिटाते, आफत है तगड़ी।।
उलटी-सीधी चालें चलते, नीयत नेक नहीं।।
नफरत के सौदागर निश-दिन, जन को बाँट रहे।
मुर्दे गड़े उखाड़ रहे, कर ऐक्य भावना नष्ट।
मिलकर चोर सिपाही को ही, नाहक डाँट रहे।।
सत्ता पाकर ऐंठ रहे, जनगण को बेहद कष्ट।।
गलत आँकड़े, झूठे वादे, दावे मनमाने।
महारोग में रैली-भाषण, करते दीवाने।।
१.१.२०२२
***
अंक माहात्म्य (०-९)
*
शून्य जन्म दे सृष्टि को, सकल सृष्टि है शून्य।
जुड़-घट अंतर शून्य हो, गुणा-भाग फल शून्य।।
*
एक ईश रवि शशि गगन, भू मैं तू सिर एक।
गुणा-भाग धड़-नासिका, है अनेक में एक।।
*
दो जड़-चेतन नार-नर, कृष्ण-शुक्ल दो पक्ष।
आँख कान कर पैर दो, अधर-गाल समकक्ष।।
*
तीन देव व्रत राम त्रय, लोक काल ऋण तीन।
अग्नि दोष-गुण ताप ऋतु, धारा मामा तीन।।
*
चार धाम युग वेद रिपु, पीठ दिशाएँ चार।
वर्ण आयु पुरुषार्थ चौ, चौका चौक अचार।।
*
पाँच देव नद अंग तिथि, तत्व अमिय शर पाँच।
शील सुगंधक इन्द्रियाँ, कन्या नाड़ी साँच।।
*
छह दर्शन वेदांग ऋतु, शास्त्र पर्व रस कर्म।
षडाननी षड राग है, षड अरि-यंत्र न धर्म।।
*
सात चक्र ऋषि द्वीप स्वर, सागर पर्वत रंग।
लोक धातु उपधातु दिन, अश्व अग्नि शुभ अंग।।
*
अष्ट लक्ष्मी सिद्धि वसु, योग कंठ के दोष।
योग-राग के अंग अठ, आत्मोन्नति जयघोष।
*
नौ दुर्गा ग्रह भक्ति निधि, हवन कुंड नौ तंत्र।
साड़ी मोहे नौगजी, हार नौलखा मंत्र।।
१.१.२०२२
***
गीत
बिदा दो
बिदा दो, जाना मुझे है दूर
चिर विरह नव मिलन का संतूर
*
भूमिका जो मिली थी मैंने निभाई
करी तुमने अदेखी, नजरें चुराई
गिर रही है यवनिका अंतिम नमन लो
नहीं अपनी, श्वास भी होती पराई
छाँव थोड़ी धूप हमने साथ झेली
हर्ष गम से रह न पाया दूर
बिदा दो, जाना मुझे है दूर
चिर विरह नव मिलन का संतूर
*
जब मिले थे किए थे संकल्प
लक्ष्य पाएँ तज सभी विकल्प
चल गिरे उठ बढ़े मिल साथ
साध्य ऊँचा भले साधन स्वल्प
धूल से ले फूल का नव नूर
बिदा दो, जाना मुझे है दूर
चिर विरह नव मिलन का संतूर
*
तीन सौं पैंसठ दिवस थे साथ
हाथ में ले हाथ, उन्नत माथ
प्रयासों ने हुलासों के गीत
गाए, शासन दास जनगण नाथ
लोक से हो तंत्र अब मत दूर
बिदा दो, जाना मुझे है दूर
चिर विरह नव मिलन का संतूर
*
जा रहा बाईस का यह साल
आ रहा तेईस करे कमाल
जमीं पर पग जमा छू आकाश
हिंद-हिंदी करे खूब धमाल
बजाओ मिल नव प्रगति का तूर
बिदा दो, जाना मुझे है दूर
चिर विरह नव मिलन का संतूर
*
अभियान आगे बढ़ाएँ हम-आप
छुएँ मंज़िल नित्य, हर पथ माप
सत्य-शिव-सुंदर बने पाथेय
नव सृजन का हो निरंतर जाप
शत्रु-बाधा को करो झट चूर
बिदा दो, जाना मुझे है दूर
चिर विरह नव मिलन का संतूर
३१-१२-२०२२
१६•३६, जबलपुर
●●●
कविता
*
महाकाल ने महाग्रंथ का पृष्ठ पूर्ण कर,
नए पृष्ठ पर लिखना फिर आरंभ किया है।
रामभक्त ने राम-चरित की चर्चा करके
आत्मसात सत-शिव करना प्रारंभ किया है।
चरण रामकिंकर के गहकर
बहे भक्ति मंदाकिनी कलकल।
हो आराम हराम हमें अब
छू ले लक्ष्य, नया झट मधुकर।
कृष्ण-कांत की वेणु मधुर सुन
नर सुरेश हों, सुर भू उतरें।
इला वरद, संजीव जीव हो।
शंभुनाथ योगेंद्र जगद्गुरु
चंद्रभूषण अमरेंद्र सत्य निधि।
अंजुरी मुकुल सरोज लिए हो
करे नमन कैलाश शिखर को।
सरला तरला, अमला विमला
नेह नर्मदा-पवन प्रवाहित।
अग्नि अनिल वसुधा सलिलांबर
राम नाम की छाया पाएँ।
नए साल में, नए हाल में,
बढ़े राष्ट्र-अस्मिता विश्व में।
रानी हो सब जग की हिंदी
हिंद रश्मि की विभा निरुपमा।
श्वास बसंती हो संगीता,
आकांक्षा हर दिव्य पुनीता।
निशि आलोक अरुण हँस झूमे
श्रीधर दे संतोष-मंजरी।
श्यामल शोभित हरि सहाय हो,
जय प्रकाश की हो जीवन में।
मानवता की जय जय गाएँ।
राम नाम हर पल गुंजाएँ।।
३१-१२-२०२२
●●●
नये साल की दोहा सलिला:
संजीव'सलिल'
*
उगते सूरज को सभी, करते सदा प्रणाम.
जाते को सब भूलते, जैसे सच बेदाम..
*
हम न काल के दास हैं, महाकाल के भक्त.
कभी समय पर क्यों चलें?, पानी अपना रक्त..
*
बिन नागा सूरज उगे, सुबह- ढले हर शाम.
यत्न सतत करते रहें, बिना रुके निष्काम..
*
अंतिम पल तक दिये से, तिमिर न पाता जीत.
सफर साँस का इस तरह, पूर्ण करें हम मीत..
*
संयम तज हम बजायें, व्यर्थ न अपने गाल.
बन संतोषी हों सुखी, रखकर उन्नत भाल..
*
ढाई आखर पढ़ सुमिर, तज अद्वैत वर द्वैत.
मैं-तुम मिट, हम ही बचे, जब-जब खेले बैत..
*
जीते बाजी हारकर, कैसा हुआ कमाल.
'सलिल'-साधना सफल हो, सबकी अबकी साल..
*
भुला उसे जो है नहीं, जो है उसकी याद.
जीते की जय बोलकर, हो जा रे नाबाद..
*
नये साल खुशहाल रह, बिना प्याज-पेट्रोल..
मुट्ठी में समान ला, रुपये पसेरी तौल..
*
जो था भ्रष्टाचार वह, अब है शिष्टाचार.
नये साल के मूल्य नव, कर दें भव से पार..
*
भाई-भतीजावाद या, चचा-भतीजावाद.
राजनीति ने ही करी, दोनों की ईजाद..
*
प्याज कटे औ' आँख में, आँसू आयें सहर्ष.
प्रभु ऐसा भी दिन दिखा, 'सलिल' सुखद हो वर्ष..
*
जनसँख्या मंहगाई औ', भाव लगाये होड़.
कब कैसे आगे बढ़े, कौन शेष को छोड़..
*
ओलम्पिक में हो अगर, लेन-देन का खेल.
जीतें सारे पदक हम, सबको लगा नकेल..
*
पंडित-मुल्ला छोड़ते, मंदिर-मस्जिद-माँग.
कलमाडी बनवाएगा, मुर्गा देता बांग..
*
आम आदमी का कभी, हो किंचित उत्कर्ष.
तभी सार्थक हो सके, पिछला-अगला वर्ष..
*
गये साल पर साल पर, हाल रहे बेहाल.
कैसे जश्न मनायेगी. कुटिया कौन मजाल??
*
धनी अधिक धन पा रहा, निर्धन दिन-दिन दीन.
यह अपने में लीन है, वह अपने में लीन..
१-१-२०११
***
।। ॐ ।।
गीत
चित्र गुप्त है नए काल का हे माधव!
गुप्त चित्र है कर्म जाल का हे माधव!
स्नेह साधना हम कर पाएँ श्री राधे!
जीवन की जय जय गुंजायें श्री राधे!
मानव चाहे बनना भाग्य विधाता पर
स्वार्थ साधकर कहे बना जगत्राता पर
सुख-सपनों की खेती हित दुख बोता है
लेख भाल का कब पढ़ पाया हे माधव!
नेह नर्मदा निर्मल कर दो श्री राधे!
रासलीन तन्मय हों वर दो श्री राधे!
रस-लय-भाव तार दे भव से सदय रहो
शारद-रमा-उमा सुत हम हों श्री राधे!
खुद ही वादों को जुमला बता देता
सत्ता हित जिस-तिस को अपने सँग लेता
स्वार्थ साधकर कैद करे संबंधों को
न्यायोचित ठहरा छल करता हे माधव!
बंधन में निर्बंध रहें हम श्री राधे!
स्वार्थरहित संबंध वरें हम श्री राधे!
आए हैं तो जाने की तैयारी कर
खाली हाथों तारकर तरें श्री राधे!
बिसरा देता फल बिन कर्म न होता है
व्यर्थ प्रसाद चढ़ा; संशय मन बोता है
बोये शूल न फूल कभी भी उग सकते
जीने हित पल पल मरता मनु हे माधव!
निजहित तज हम सबहित साधें श्री राधे!
पर्यावरण शुद्धि आराधें श्री राधे!
प्रकृति पुत्र हों, संचय-भोग न ध्येय बने
सौ को दें फिर लें कुछ काँधे श्री राधे!
माधव तन में राधा मन हो श्री राधे!
राधा तन में माधव मन हो हे माधव!
बिंदु सिंधु में, सिंधु बिंदु में हे माधव!
हो सहिष्णु सद्भाव पथ वरें श्री राधे!
१-१-२०२०
***
नवगीत
शिव-शिव कह उठ हर सुबह,
सुमिर शिवा सो रात.
हर बिगड़ी को ले बना,
कर न बात बेबात.
.
समय-शिला पर दे बना,
कोशिश के नव चित्र.
समय-रेत से ले बना,
नया घरौंदा मित्र.
मिला आँख से आँख तू,
समय सुनेगा बात.
हर बिगड़ी को ले बना,
कर न बात बेबात.
.
समय सिया है, सती भी,
तजें राम-शिव जान.
यशोधरा तज बुद्ध बन,
सही समय अनुमान.
बंध रहे सम तो उचित
अनुचित उचित न तात.
हर बिगड़ी को ले बना,
कर न बात बेबात.
.
समय सत्य-सुंदर वरो,
पूज शिवा-शिव संग.
रंग न हों बदरंग अब,
साध्य न बने अनंग.
सतत सजग रह हर समय,
समय न करे दे घात.
हर बिगड़ी को ले बना,
कर न बात बेबात.
१.१.२०१८
...
नवगीत
*
नए साल!
आजा कतार में
आगे मत जा।
*
देश दिनों से खड़ा हुआ है,
जो जैसा है अड़ा हुआ है,
किसे फ़िक्र जनहित का पेड़ा-
बसा रहा है, सड़ा हुआ है।
चचा-भतीजा ताल ठोंकते,
पिता-पुत्र ज्यों श्वान भौंकते,
कोई काट न ले तुझको भी-
इसीलिए कहता हूँ-
रुक जा।
*
वादे जुमले बन जाते हैं,
घपले सारे धुल जाते हैं,
लोकतंत्र के मूल्य स्वार्थ की-
दीमक खाती, घुन जाते हैं।
मौनी बाबा बोल रहे हैं
पप्पू जहँ-तहँ डोल रहे हैं
गाल बजाते जब-तब लालू
मत टकराना
बच जा झुक जा।
*
एक आदमी एक न पाता,
दूजा लाख-करोड़ जुटाता,
मार रही मरते को दुनिया-
पिटता रोये, नहीं सुहाता।
हुई देर, अंधेर यहाँ है,
रही अनसुनी टेर यहाँ है,
शुद्ध दलाली, न्याय कहाँ है?
जलने से पहले
मत बुझ जा।
***
नए साल की पहली रचना-
कलह कथा
*
कुर्सी की जयकार हो गयी, सपा भाड़ में भेजें आज
बेटे के अनुयायी फाड़ें चित्र बाप के, आये न लाज
स्वार्थ प्रमुख, निष्ठा न जानते, नारेबाजी शस्त्र हुआ
भीड़तंत्र ही खोद रहा है, लोकतंत्र के लिए कुआं
रंग बदलता है गिरगिट सम, हुआ सफेद पूत का खून
झुका टूटने के पहले ही बाप, देख निज ताकत न्यून
पोल खुली नूरा कुश्ती की, बेटे-बाप हो गए एक
चित्त हुए बेचारे चाचा, दिए गए कूड़े में फेंक
'आजम' की जाजम पर बैठे, दाँव आजमाते जो लोग
नींव बनाई जिनने उनको ठुकराने का पाले रोग
'अमर' समर में हों शहीद पछताएँ, शत्रु हुए वे ही
गोद खिलाया जिनको, भोंका छुरा पीठ में उनने ही
जे.पी., लोहिया, नरेन्द्रदेव की, आत्माएँ करतीं चीत्कार
लालू, शरद, मुलायम ने ही सोशलिज्म पर किया प्रहार
घर न घाट की कोंग्रेस के पप्पू भाग चले अवकाश
कहते थे भूकम्प आएगा, हुआ झूठ का पर्दाफाश
अम्मा की पादुका उठाये हुईं शशिकला फिर आगे
आर्तनाद ममता का मिथ्या, समझ गए जो हैं जागे
अब्दुल्ला कर-कर प्रलाप थक-चुप हो गए, बोलती बन्द
कमल कर रहा आत्मप्रशंसा, चमचे सुना रहे हैं छंद
सेनापति आ गए नए हैं, नया साल भी आया है
समय बताएगा दुश्मन कुछ काँपा या थर्राया है?
इनकी गाथा छोड़ चलें हम,घटीं न लेकिन मिटीं कतार
बैंकों में कुछ बेईमान तो मिले मेहनती कई हजार
श्री प्रकाश से नया साल हो जगमग करिये कृपा महेश
क्यारी-क्यारी कुसुम खिलें नव, काले धन का रहे न लेश
गुप्त न रखिये कोई खाता, खुला खेल खेलें निर्भीक
आजीवन अध्यक्ष न होगा, स्वस्थ्य बने खेलों में लीक
१.१.२०१७
***
लघुकथा
नया साल
*
चंद कदमों के फासले पर एक बूढ़े और एक नवजात को सिसकते-कराहते देखकर चौंका, सजग हो धीरज बँधाकर कारण पूछा तो दोनों एक ही तकलीफ के मारे मिले। उनकी व्यथा-कथा ने झकझोर दिया।
वे दोनों समय के वंशज थे, एक जा रहा था, दूसरा आ रहा था, दोनों को पहले से सत्य पता था, दोनों अपनी-अपनी भूमिकाओं के लिये तैयार थे। फिर उनके दर्द और रुदन का कारण क्या हो सकता था? बहुत सोचने पर भी समझ न आया तो उन्हीं से पूछ लिया।
हमारे दर्द का कारण हो तुम, तुम मानव जो खुद को दाना समझने वाले नादान हो। कुदरत के कानून के मुताबिक दिन-रात, मौसम, ऋतुएँ आते-जाते रहते हैं। आदमियों को छोड़कर कोई दूसरी नस्ल कुदरत के काम में दखल नहीं देती। सब अपना-अपना काम करते हैं। तुम लोग बदलावों को खुद से जोड़कर और सबको परेशान करते हो।
कुदरत के लिये सुबह दोपहर शाम रात और पैदा होने-मरने का क्रम का एक सामान्य प्रक्रिया है। तुमने किसी आदमी से जोड़कर समय को साल में गिनना आरंभ कर दिया, इतना ही नहीं अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग आदमियों के नाम पर साल बना लिये।
अब साल बदलने की आड़ में हर कुछ दिनों में नये साल के नाम पर झाड़ों को काट कर कागज़ बनाकर उन पर एक दूसरे को बधाई कामना देते हो जबकि इसमें तुम्हारा कुछ नहीं होता। कितना शोर मचाते हो?, कितनी खाद्य सामग्री फेंकते हो?, कितना धुआँ फैलाते हो? पशु-पक्षियों का जीना मुश्किल कर देते हो। तुम्हारी वज़ह से दोनों जाते-आते समय भी चैन से नहीं रह सकते। सुधर जाओ वरना भविष्य में कभी नहीं देख पालोगे कोई नया साल। समय के धैर्य की परीक्षा मत लो, काल को महाकाल बनने के लिये मजबूर मत करो।
इतना कहकर वे दोनों तो ओझल हो गये लेकिन मेरी आँख खुल गयी, उसके बाद सो नहीं सका क्योंकि पड़ोसी जोर-शोर से मना रहे थे नया साल।
***
मुक्तिका:
रहें साल भर
*
रहें साल भर हँस चाहों में
भले न रह पाएँ बाँहों में
*
कोशिश, कशिश, कदम का किस्सा
कह-सुन, लिख-पढ़-गढ़ राहों में
*
बहा पसीना, चाय बेचकर
कुछ की गिनती हो शाहों में
*
संगदिली या तंगदिली ने
कसर न छोड़ी है दाहों में
*
भूख-निवाला जैसे हम-तुम
संग रहें चोटों-फाहों में
*
अमर हुई है 'सलिल' लगावट
ज़ुल्म-जुदाई में, आहों में
*
परवाज़ों ने नाप लिया है
आसमान सुन लो वाहों में
***
दोहा सलिला:
साल रहा है दर्द यह, कैसा आया साल?
जा बैठा है चीन की, गोद अनुज नेपाल
*
बड़ा न होकर सगा हो, अपना भारत देश
रहें पडोसी संग तो, होगी शक्ति विशेष
*
सैन्य कटाकर मिल रहे, नायक गले सहास
नर मुंडों पर सियासत, जनगण को संत्रास
*
साल मिसाल बने 'सलिल', घटे प्रदूषण रोज
नेता लूटें देश को, गिद्ध करें ज्यों भोज
*
अफसरशाही ने किया, लोकतंत्र को कैद
मना रहा रंगरेलियाँ, लोभ तन्त्र नापैद
१.१.२०१६
***
प्रथम नवगीत २०१५
.
हे साल नये!
मेहनत के रच दे गान नये
.
सूरज ऊगे
सब तम पीकर खुद ही डूबे
शाम हँसे, हो
गगन सुनहरा, शशि ऊगे
भूचाल नये
थक-हार विफल तूफ़ान नये
.
सामर्थ्य परख
बाधा-मुश्किल वरदान बने
न्यूनता दूर कर
दृष्टि उठे या भृकुटि तने
वाचाल न हो
पुरुषार्थ गढ़े प्रतिमान नये
.
कंकर शंकर
प्रलयंकर, बन नटराज नचे
अमृत दे सबको
पल में सारा ज़हर पचे
आँसू पोंछे
दस दिश गुंजित हों गान नये
.
१-१-२०१५, ०१.१०
***
नवगीत:
भाल उठा...
*
बहुत झुकाया अब तक तूने
अब तो अपना भाल उठा...
*
समय श्रमिक!
मत थकना-रुकना.
बाधा के सम्मुख
मत झुकना.
जब तक मंजिल
कदम न चूमे-
माँ की सौं
तब तक
मत चुकना.
अनदेखी करदे छालों की
गेंती और कुदाल उठा...
*
काल किसान!
आस की फसलें.
बोने खातिर
एड़ी घिस ले.
खरपतवार
सियासत भू में-
जमी- उखाड़
न न मन-बल फिसले.
पूँछ दबा शासक-व्यालों की
पोंछ पसीना भाल उठा...
*
ओ रे वारिस
नए बरस के.
कोशिश कर
क्यों घुटे तरस के?
भाषा-भूषा भुला
न अपनी-
गा बम्बुलिया
उछल हरष के.
प्रथा मिटा साकी-प्यालों की
बजा मंजीरा ताल उठा...
***
२०१४ का अंतिम नवगीत:
कब आया, कब गया
साल यह
.
रोजी-रोटी रहे खोजते
बीत गया
जीवन का घट भरते-भरते
रीत गया
रो-रो थक, फिर हँसा
साल यह
.
आये अच्छे दिन कब कैसे?
खोज रहे
मतदाता-हित नेतागण को
भोज रहे
छल-बल कर ढल गया
साल यह
.
मत रो रोना, चैन न खोना
धीरज धर
सुख-दुःख साथी, धूप-छाँव सम
निशि-वासर
सपना बनकर पला
साल यह
.
३१.१२. २०१४, २३.५५
***
गीत:
झाँक रही है...
संजीव 'सलिल'
*
झाँक रही है
खोल झरोखा
नए वर्ष में धूप सुबह की...
*
चुन-चुन करती चिड़ियों के संग
कमरे में आ.
बिन बोले बोले मुझसे
उठ! गीत गुनगुना.
सपने देखे बहुत, करे
साकार न क्यों तू?
मुश्किल से मत डर, ले
उनको बना झुनझुना.
आँक रही
अल्पना कल्पना
नए वर्ष में धूप सुबह की...
*
कॉफ़ी का प्याला थामे
अखबार आज का.
अधिक मूल से मोह पीला
क्यों कहो ब्याज का?
लिए बांह में बांह
डाह तज, छह पल रही-
कशिश न कोशिश की कम हो
है सबक आज का.
टाँक रही है
अपने सपने
नए वर्ष में धूप सुबह की...
१.१.२०१४
***
बाल गीत :
ज़िंदगी के मानी
*
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.
मेघ बजेंगे, पवन बहेगा,
पत्ते नृत्य दिखायेंगे.....
*
बाल सूर्य के संग ऊषा आ,
शुभ प्रभात कह जाएगी.
चूँ-चूँ-चूँ-चूँ कर गौरैया
रोज प्रभाती गायेगी..
टिट-टिट-टिट-टिट करे टिटहरी,
करे कबूतर गुटरूं-गूं-
कूद-फाँदकर हँसे गिलहरी
तुझको निकट बुलायेगी..
आलस मत कर, आँख खोल,
हम सुबह घूमने जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
*
आई गुनगुनी धूप सुनहरी
माथे तिलक लगाएगी.
अगर उठेगा देरी से तो
आँखें लाल दिखायेगी..
मलकर बदन नहा ले जल्दी,
प्रभु को भोग लगाना है.
टन-टन घंटी मंगल ध्वनि कर-
विपदा दूर हटाएगी.
मुक्त कंठ-गा भजन-आरती,
सरगम-स्वर सध जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
*
मेरे कुँवर कलेवा कर फिर,
तुझको शाला जाना है.
पढ़ना-लिखना, खेल-कूदना,
अपना ज्ञान बढ़ाना है..
अक्षर,शब्द, वाक्य, पुस्तक पढ़,
तुझे मिलेगा ज्ञान नया.
जीवन-पथ पर आगे चलकर
तुझे सफलता पाना है..
सारी दुनिया घर जैसी है,
गैर स्वजन बन जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
***
गीत 
नया पृष्ठ
*
महाकाल के महाग्रंथ का
नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा....
*
वह काटोगे,
जो बोया है.
वह पाओगे,
जो खोया है.
सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर
कर्म-मर्म सब आज तुल रहा....
*
खुद अपना
मूल्यांकन कर लो.
निज मन का
छायांकन कर लो.
तम-उजास को जोड़ सके जो
कहीं बनाया कोई पुल रहा?...
*
तुमने कितने
बाग़ लगाये?
श्रम-सीकर
कब-कहाँ बहाए?
स्नेह-सलिल कब सींचा?
बगिया में आभारी कौन गुल रहा?...
*
स्नेह-साधना करी
'सलिल' कब.
दीन-हीन में
दिखे कभी रब?
चित्रगुप्त की कर्म-तुला पर
खरा कौन सा कर्म तुल रहा?...
*
खाली हाथ?
न रो-पछताओ.
कंकर से
शंकर बन जाओ.
ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो.
देखोगे मन मलिन धुल रहा...
***
गीत
साल नया
*
कुछ ऐसा हो साल नया
*
कुछ ऐसा हो साल नया,
जैसा अब तक नहीं हुआ.
अमराई में मैना संग
झूमे-गाए फाग सुआ...
*
बम्बुलिया की छेड़े तान.
रात-रात जग जगा किसान.
कोई खेत न उजड़ा हो-
सूना मिले न कोई मचान.
प्यासा खुसरो रहे नहीं
गैल-गैल में मिले कुआ...
*
पनघट पर पैंजनी बजे,
बीर दिखे, भौजाई लजे.
चौपालों पर झाँझ बजा-
दास कबीरा राम भजे.
तजें सियासत राम-रहीम
देख न देखें कोई खुआ...
*
स्वर्ग करे भू का गुणगान.
मनुज देव से अधिक महान.
रसनिधि पा रसलीन 'सलिल'
हो अपना यह हिंदुस्तान.
हर दिल हो रसखान रखे
हरेक हाथ में मालपुआ...
१.१.२०११
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