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गुरुवार, 18 जनवरी 2024

वंदे भारत ट्रेन

वर्तमान में जो इलेक्ट्रिक ट्रेनें चल रही है उनकी स्पीड भी 100 से 120 तक की जा सकती है तो फिर वंदे भारत जैसी महंगी ट्रेन चलाने की क्या जरूरत है जबकि उसका किराया भी ज्यादा रहता है ?

यह पूर्ण रूप से सत्य नहीं है और यह आपका नहीं बल्कि हमारी मीडिया कितनी अल्पज्ञानी है उसका प्रमाण है, जो कि engine less ट्रेन का अजूबा ही हेडलाइन/ब्रेकिंग न्यूज़ बनाए हुए है और अहम तकनीकी जानकारियाँ पाठकों/दर्शकों तक नहीं पहुंचा रही हैं। हकीकत तो यह है कि वर्तमान में जो भी इलेक्ट्रिक इंजन चल रहे हैं उनमें यात्री परिचालन हेतु इलेक्ट्रिक लोको और भी उच्चतर स्पीड - 130 किलोमीटर प्रति घंटा तक के लिए फिट हैं।


फिर हम वंदे भारत क्यों चला रहे हैं ?
एक वाक्य में जवाब दें तो इसका उत्तर है -वंदे भारत next generation टेक्नोलॉजी है;
बुलेट ट्रेन, हाई स्पीड ट्रेन जो लगभग 400 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड से चलती है - वही टेक्नोलॉजी वंदे भारत की है - अर्थात ट्रेन सेट टेक्नोलॉजी , डिस्ट्रिब्यूटेड पावर के साथ

ट्रैक अपग्रेड होने के बाद वंदे भारत मज़े से 160 किलोमीटर/घंटा की स्पीड से चल सकती है और भविष्य में 180 kmph की स्पीड भी संभव है।

दरअसल , ट्रेन दो तरह की होती हैं।इंजन से खींची जानेवाली ट्रेन (Loco Hauled Train)
इंजन विहीन ट्रेन (Train Sets)

इंजन से खींची जानेवाली ट्रेन टेक्नोलॉजी पुरानी हो गई है और उच्च स्पीड में ट्रेनों को चलाने हेतु यह उपयुक्त नहीं है।

इसका प्रमुख कारण है - दो डब्बों के बीच लगने वाला कपलर बल (coupler forces) जो 1) इंजन के शक्तिशाली होने से 2) ट्रेन लंबी होने से 3) चढ़ाई होने से - बहुत बढ़ जाता है।


    पारंपरिक ICF (नीले रंग वाले) डब्बों में लगा स्क्रू कपलिंग (प्रतीकात्मक)

 LHB ट्रेन के दो डब्बों के बीच में लगनेवाला विशेष कपलर

दो डब्बों के बीच लगने वाले कपलर की क्षमता में वृद्धि को निम्नवत देख सकते हैंस्क्रू कपलिंग (60 के दशक से) : 36 टन
उन्नत स्क्रू कपलिंग(90 के दशक से):75 टन
CBC कपलर LHB में (2000 से): 200 टन

इससे ऊपर कपलर की क्षमता बढ़ाना संभव नहीं है।

ऊपर से यदि चढ़ाई 1/250 हो तो कपलर लोड डबल हो जाता है।

फिर उपाय क्या है ?ट्रेन सेट ही एकमात्र उपाय सम्भव है।

ट्रेन सेट क्या है ?

2, 3, 4 या 8 डब्बों की छोटी छोटी ट्रेन होती है, जिन्हें आपस में जोड़ दिया जाता है, जिससे कपलर की मजबूती की जरूरत 24 डब्बों से घटकर 2, 3, या 4 डब्बों की हो जाती है।

इससे 20 -24 डब्बों की ट्रेन की तुलना में दो डब्बों के बीच का बल (कपलर बल ) बहुत ही ज्यादा घट जाता है।

चित्र देखें - 20 डब्बों की ट्रेन जिसे इंजन खींच रहा है।

आप देख सकते हैं किइंजन पर 20 डब्बों का बल लग रहा है।
पहले डब्बे पर 19 डब्बों का बल
दूसरे डब्बे पर 18 डब्बों का बल

अब नीचे के चित्र से तुलना करें।



इंजन पर 1 डब्बा का बल लग रहा है। पहले डब्बे पर 0 डब्बों का बल लग रहा है।

बिना किसी भी तकनीकी ज्ञान के आप यह जान चुके हैं कि हाई स्पीड ट्रेन के दो डिब्बों के बीच उत्पन्न होने वाला कपलर बल (Coupler forces) को कैसे कम किया जा सकता है।

इसी अभिकल्पना को आगे बढ़ाते हुए , वंदे भारत ट्रेन में हर दूसरा डब्बा इंजन का काम करता है (क्योंकि हर दूसरे डब्बे में पहियों को घुमाने वाले मोटर लगे रहते हैं)। यह तकनीकी तौर पर ट्रेन सेट सह डिस्ट्रिब्यूटेड पावर है।

अर्थात, ट्रेन को केवल एक जगह (इंजन) से पावर देने की जगह ढेरों जगह से (8 जगह या 50% डब्बों से) पावर दिया जाता है। यह नीचे चित्र से और स्पष्ट होगा ।

(सौजन्य, हैंडबुक ऑन ट्रेन 18 - रेल मंत्रालय)

यहाँ हर दूसरे डब्बे पर MC लिखा है(Motor Coach) जो एक इंजन के समतुल्य है, अर्थात 16 डब्बों वाली वंदे भारत में 50% या 8 डब्बे इंजन का भी कार्य करते हैं। तकनीकी तौर पर यह 50% powering है।

भविष्य में स्पीड और बढ़ानी हो तो 75% powering भी कर सकते हैं।

तो, आप देख सकते हैं कि वंदे भारत की टेक्नोलॉजी बिल्कुल अलग है और futuristic (भविष्य केंद्रित) है।विश्व में मुश्किल से 1 दर्ज़न देशों के पास ये अत्याधुनिक, उन्नत और futuristic टेक्नोलॉजी है।कीमत ( उत्पादन लागत):

आम भ्रांतियों के विपरीत, वंदे भारत की उत्पादन लागत (कीमत) उसके समतुल्य अन्य AC डब्बों से बहुत ज्यादा नहीं है:

16AC चेयर कार:16X₹3करोड़=₹48 करोड़

2 पावर कार: 2X ₹4करोड़ = ₹8 करोड़

1 WAP5 इंजन: ₹16 करोड़कुल: ₹70 करोड़

वंदे भारत की कीमत : ₹100 करोड़

अतिरिक्त लागत: ₹30 करोड़

जो मूलतः निम्न कारणों से है:आम ट्रेन के 4 मोटरों की जगह 32 (यानी 26 अतिरिक्त) मोटरों की कीमत: ₹ 8 करोड़
ऑटोमैटिक दरवाज़े एवं बेहतर डिस्क ब्रेक के कारण अतिरिक्त कीमत: ₹12 करोड़

कुल ₹20 करोड़ जो कि ₹30 करोड़ के आसपास ही है।

₹10 करोड़ R&D (अनुसंधान और डिज़ाइन) कॉस्ट है , जो कि नगण्य है और आम तौर पर यह हज़ारों करोड़ अकेले होता है।यात्री भाड़ा:

चूंकि वंदे भारत – शताब्दी एक्सप्रेस कोटि की है ( कुछ उच्चतर ही है) इसीलिए इसके भाड़ा की तुलना उन्ही से करते हैं।

नई दिल्ली–लुधियाना,

यात्रा तिथि:12 जुलाई,बुकिंग तिथि:11जुलाई

क्लास: AC chair car, तुलनात्मक भाड़ा IRCTC App se

वंदे भारत(22439):₹920 समय 3h19m

शताब्दी(12013):₹1055 समय 3h46m

शताब्दी(12029):₹905 समय 3h48m

ऊपर के चार्ट से स्पष्ट है, कि सबसे कम यात्रा समय के बावजूद वंदे भारत का भाड़ा न केवल शताब्दी के समतुल्य है, बल्कि कतिपय मामलों में कम भी है।अत: वंदे भारत में ज्यादा भाड़ा की बात भी गलत है।

यहां यह ध्यान देने योग्य बात है कि, वंदे भारत में डायनामिक fare नहीं है। लेकिन लगभग 2 महीने बाद यानी 31 अगस्त को भी तुलनात्मक स्थिति यही है। हाँ शताब्दी का न्यूनतम भाड़ा ₹905 से घटकर ₹755 हो गया जो कि वंदे भारत से 18% कम है, लेकिन दूसरी शताब्दी का भाड़ा ₹955 है जो कि वंदे भारत के भाड़ा (₹920) से ज्यादा है।

वंदे भारत का परिचालन क्षेत्र में सबसे बड़ा फायदा हैबहुत ही तेज़ pick up और
ज़बरदस्त ब्रेकिंग

वंदे भारत का pick up शताब्दी की तुलना में दुगुना से भी ज्यादा है

और ब्रेकिंग डिस्टेंस बहुत ही कम।

(विस्तृत गणना परिशिष्ट में है)

जहाँ शताब्दी, राजधानी सहित अन्य ट्रेनों में 130 किलोमीटर स्पीड से रुकने में और दोबारा वही स्पीड पिकअप करने में लगभग साढ़े 3 मिनट का टाइम लॉस होता है वही बंदे भारत में यह टाइम लॉस मुश्किल से 1 मिनट के आसपास का है।

यानी हर बार रुकने में और स्पीड पिकअप करने में वंदे भारत ढ़ाई मिनट का समय बचाती है।कोई भी ट्रेन लगातार 130 किलोमीटर/घंटा स्पीड से नहीं चलती है बल्कि जगह-जगह गति प्रतिबंधित क्षेत्र रहता है जहां 30, 50, 75, 100 या 110 किलोमीटर/घंटा अधिकतम अनुमेय (permissible) गति होती है।
ऐसे गति प्रतिबंधित क्षेत्रों में वंदे भारत कुछ मिनटों से लेकर कुछ सेकंड हर बार बचाती है।

सारांश

वंदे भारत को चलाने के फायदेवंदे भारत next generation टेक्नोलॉजी है यानी भविष्य की टेक्नोलॉजी है ;
बुलेट ट्रेन, हाई स्पीड ट्रेन जो लगभग 400 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड से चलती है - वही टेक्नोलॉजी वंदे भारत की है - अर्थात ट्रेन सेट टेक्नोलॉजी , डिस्ट्रिब्यूटेड पावर के साथ
निकट भविष्य में इसकी स्पीड 160 किलोमीटर/घंटा हो जाएगी और कालांतर में और भी उच्च स्पीड सम्भव है।
160 किलोमीटर/घंटा से रुकने की अधिकतम दूरी वंदे भारत की 805.06 मीटर है, जो 1 किलोमीटर से कम है, अतः वर्तमान सिग्नलिंग व्यवस्था में बिना किसी परिवर्तन के 160 की स्पीड में ट्रेन चलाना सम्भव है।
एकाध जगह रुकने और कई गति प्रतिबंधित क्षेत्रों के बावजूद इसकी औसत गति ज्यादा कम नहीं होती है क्योंकि इसका पिक अप बहुत ही ज्यादा है और ब्रेकिंग टाइम अत्यंत ही कम
दो डब्बों के बीच के झटकों (कपलर बल couple forces) में अत्यधिक कमी, सो ज्यादा आरामदायक सफर यात्रियों के लिए।
मात्र 1 जगह (इंजन) से पावर देने की जगह 8 अलग अलग डब्बों से पावर देने के कारण - इंजन फेल होने की व्यावहारिक संभावना शून्य । 4 या 6 मोटर की जगह 32 मोटर । सो एकाध फेल भी कर जाए तो भी ट्रेन रुकेगी नहीं और उसी स्पीड से चलती रहेगी।
दो डब्बों के बीच केवल कैनवास से बंद vestibule की जगह सीलबंद चौड़ा gangway
दो डब्बों के बीच temporary CBC coupler की जोड़ की जगह semi permanent coupler
यात्रा समय में 10%-15% कटौती के बावजूद भाड़ा शताब्दी के समतुल्य
बेहतर यात्री सुविधा

******** मुख्य उत्तर समाप्त ********परिशिष्ट

24 डब्बों की LHB ट्रेन और वंदे भारत की ब्रेकिंग का तुलनात्मक अध्ययन


130 की स्पीड पर समतल ट्रैक पर 24 एल एच बी डब्बे वाली ट्रेन का ब्रेकिंग डिस्टेंस 1161 मीटर है

वहीं

वंदे भारत में 160 किलोमीटर/घंटा से रुकने की अधिकतम दूरी 805.06 मीटर है

एक गणना के अनुसार

सामान्य 24 डब्बे की ट्रेन 130 की स्पीड से रुकने में समय= 65 सेकंड , वहीं वंदे भारत में यह समय = 18 सेकंड

यानी हर बार रुकने में 47 सेकंड की बचत

(स्रोत: आर डी एस ओ /रेल मंत्रालय का पत्रांक MC/LHB/COACH दिनांक 22.1.2020 का पारा 1.9 )

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