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रविवार, 21 जनवरी 2024

प्रथम महिला पीएच.डी., कमला सोहनी,

 विज्ञान में पी. एच. डी करने वाली पहली भारतीय महिला

कमला सोहनी 😊

साल 1933 की बात है। उन दिनों महिलाओं की शिक्षा पर ख़ास तवज्जो नहीं दी जाती थी। फिर भी, कमला ने बॉम्बे विश्वविद्यालय से की डिग्री हासिल की। उनके मुख्य विषय थे रसायन विज्ञान, सहायक विषय भौतिक विज्ञान।ग्रेजुएशन में उन्हें अपनी कक्षा में सबसे अधिक अंक प्राप्त हुए। इसके बादपोस्ट ग्रेजुएशन के लिए उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान में रिसर्च फेलोशिप में दाखिले के लिए आवेदन किया। लेकिन संसथान के प्रमुख प्रोफेसर और नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. सी.वी रमन ने इस आवेदन को सिर्फ इसलिए खारिज कर दिया क्योकि कमला एक महिला थीं।

रमन के अनुसार वह जगह महिलाओं के लिए नहीं थी, महिलाएं विज्ञान के उस संस्थान में रिसर्च कर पाने जितनी क़ाबिल नहीं होती थीं, वह अनुसंधान के काम को आगे बढ़ाने में सक्षम नहीं थीं। इसका विरोध करने के लिए कमला सत्याग्रह पर बैठ गयी और आखिर डॉ. रमन ने कुछ शर्तों के साथ उन्हें दाखिला दिया।

यह कहानी उसी कमला सोहनी की है, जो आगे चलकर विज्ञान में पीएचडी करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं!

आईआईएससी में कमला के गुरु श्री श्रीनिवासय्या थे। यहां अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने दूध, दालों और फलियां (एक ऐसा विषय जो भारतीय संदर्भ में विशेष रूप से महत्वपूर्ण था) में प्रोटीन पर काम किया। उनके समर्पण और शोध क्षमता ने प्रो. रमन के 1936 में विशिष्ट रूप से एमएससी की डिग्री पूरी करने के एक साल बाद महिलाओं को आईआईएससी में प्रवेश देने के निर्णय को प्रभावित किया।

फिर उन्हें फ्रेडरिक जी. हॉपकिंस प्रयोगशाला में डॉ. डेरेक रिक्टर के अधीन काम करने के लिए यूके के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में आमंत्रित किया गया । वह न्यूनहैम कॉलेज की छात्रा थी , 1937 में मैट्रिक पास कर रही थी और जैविक प्राकृतिक विज्ञान ट्राइपोज़ का अध्ययन कर रही थी।

जब रिक्टर चले गए, तो उन्होंने डॉ रॉबिन हिल के अधीन काम किया और पौधों के ऊतकों का अध्ययन किया। आलू पर अपने काम से, उन्होंने एंजाइम 'साइटोक्रोम सी' की खोज की, जो पौधों, मानव और पशु कोशिकाओं में पाए जाने वाले इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला (जिस प्रक्रिया से जीवों के लिए ऊर्जा का निर्माण होता है) में एक आवश्यक भूमिका निभाता है।

इस विषय पर उनकी थीसिस 14 महीनों में पूरी हुई और 40 पेज लंबी थी, जो आमतौर पर बहुत लंबे समय तक पीएचडी सबमिशन से एक प्रस्थान था।

पीएचडी प्राप्त करने के बाद, कमला 1939 में भारत लौट आईं।

महात्मा गांधी के समर्थक के रूप में , वह अपने देश वापस आना चाहती थीं और राष्ट्रवादी संघर्ष में योगदान देना चाहती थीं।

उन्हें नई दिल्ली में लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में जैव रसायन विभाग का प्रोफेसर और प्रमुख नियुक्त किया गया था । बाद में, उन्होंने पोषण अनुसंधान प्रयोगशाला, कुन्नूर में सहायक निदेशक के रूप में काम किया, विटामिन के प्रभावों पर ध्यान केंद्रित किया।

कमला सोहोनी ने भारत में अपने बाद की उन महिलाओं के लिए विज्ञान के क्षेत्र में राह आसान की। उन्होंने स्त्री विरोधी मानसिकता से भरी राय रखने वाले वैज्ञानिक स्पेस में पहला कदम रखा और इसके लिए हमारी इस पुरखिन को हमेशा नारीवादी विमर्श याद रखेगा। एक महिला जिसके घर में शिक्षा का माहौल था, जो उस ज़माने में विदेश पढ़ने जाने में सक्षम हो सकीं, जब उनके लिए जेंडर के आधार पर चीजें इतनी मुश्किल थी तो वंचित समुदाय से कोई महिला कितनी भी क़ाबिल हुई होंगी उनके लिए दोहरा तिरहरा शोषण पार करना कितना मुश्किल होगा और आज भी है।

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