छंद सलिला:
प्रमाणिका और पञ्चचामर छंद
संजीव
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प्रमाणिका
अन्य नाम: नगस्वरूपिणी
प्रमाणिका एक अष्टाक्षरी छंद है. अष्टाक्षरी छंदों के २५६ प्रकार हो सकते हैं। प्रमाणिका का सूत्र 'ज र ल ग' है।
इसके दोगुने को पञ्चचामर कहते हैं।
ज़रा लगा प्रमाणिका।
लक्षण: जगण रगण + लघु ।s। s। s । s यति ४. ४
उदाहरण:
१.
ज़रा लगाय चित्तहीं। भजो जु नंद नंदहीं।
प्रमाणिका हिये गहौ। जु पार भौ लगा चहौ। - जगन्नाथ प्रसाद 'भानु'
२.
सही-सही उषा रहे
सही-सही दिशा रहे
नयी-नयी हवा बहे
भली-भली कथा कहे -रामदेव लाल 'विभोर'
३.
जगो उठो चलो बढ़ो
सभी यहीं मिलो खिलो
न गाँव को कभी तजो
न देव गैर का भजो - संजीव
पञ्चचामर
अन्य नाम: नराच, नागराज
पञ्चचामर एक सोलहाक्षरी छंद है. सोलहाक्षरी छंदों के ६५,५३६ प्रकार हो सकते हैं. प्रमाणिका का सूत्र 'ज र ज र ज ग' है.
यह प्रमाणिका का दोगुना होता है: प्रमाणिका पदद्वयं वदंति पंचचामरं
लक्षण: जगण रगण जगण रगण जगण + गुरु ।s। ।s। ।s। ।s। ।s। s
उदाहरण:
१.
जु रोज रोज गोपतीय डार पंच चामरै।
जु रोज रोज गोप तीय कृष्ण संग धावतीं।
सु गीति नाथ पाँव सों लगाय चित्त गावतीं।।
कवौं खवाय दूध औ दही हरी रिझावतीं।
सुधन्य छाँड़ि लाज पंच चामरै डुलावतीं।। - जगन्नाथ प्रसाद 'भानु'
२.
उठो सपूत देश की, धरा तुम्हें पुकारती
विषाद से घिरी पड़ी, फ़टी दशा निहारती
किसान हो कुदाल लो, जवान हो मशाल लो
समग्र बुद्धिजीवियों, स्वदेश को संभाल लो -रामदेव लाल 'विभोर'
३.
तजो न लाज शर्म ही, न माँगना दहेज़ रे!
करो सुकर्म धर्म ही, भविष्य लो सहेज रे!
सुनो न बोल-बात ही, मिटे अँधेर रात भी.
करो न द्वेष घात ही, उगे नया प्रभात भी.
रावण कृत शिवतांडव स्तोत्र की रचना पञ्चचामर छंद में ही है.
जटाटवीगलज्जल:प्रवाहपावितस्थले। गलेSवलंब्यलंबितां भुजंगतुंगमालिकां।।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादमड्डमर्वयं। चकार चंडताण्डवं तनोतुन: शिव: शिवं।।
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