शुभ कामना गीत:
अनुश्री-सुमित परिणय १२-६-२०१५ बिलासपुर
संजीव
*
मन जो मन से मिल गया
तो मन ने हँस कहा:
'मन तू मन से मिल गया
है' मन ने फँस कहा
'हाथ थाम ले जरा
तू संग-संग चल,
मान भी ले बात मेरी
तू न यूँ मचल.
बेरहम न बन कठोर-
दिल जरा पिघल,
आ गया बिहार से
बिलासपुर सम्हल'
मन जो मन से मिल गया
तो मन ने धँस कहा.
*
मन जो मन से मिल गया
तो मन ने रुक कहा:
'क्या करूँ मैं साथ तेरे
चार-कदम चल?
कौन जनता न कहीं
जाए तू बदल?
देख किसी और को
न जाए झट फिसल?
कैसे मान लूँ कि तेरी
प्रीत है असल?
मन जो मन से मिल गया
तो मन ने तन कहा.
*
मन जो मन से मिल गया
तो मन ने मुड़ कहा:
'मैं न राम सिया को जो
भेज दे जंगल
मैं न कृष्ण प्रेमिका को
जो दे खुद बदल.
लालू-राबड़ी सी करें
प्रीत हम अटल.
मोटियार मैं तू
मोटियारी है नवल.'
मन जो मन से मिल गया
तो मन ने तक कहा.
*
मन जो मन से मिल गया
तो मन ने झुक कहा:
चक्रवात जैसी अपनी
प्रीत हो प्रबल।
लाख हों भूकम्प नहीं
प्यार हो निबल
सात जनम संग रहें
हो न हम निबल
श्वास-श्वास प्रीत व्याप्त
ज्यों भ्रमर-कमल
मन जो मन से मिल गया
तो मन ने मिल कहा.
*
मन जो मन से मिल गया
तो मन ने फिर कहा:
नीर-क्षीर मिल गया
न कोई दे दखल
अंतरों से अंतरों को
पल में दें मसल
चित्र गुप्त ज़िंदगी के
देख-जान लें
रीत प्रीत की निभा
सकें, सजल नयन
मन जो मन से मिल गया
तो मन ने हँस कहा.
*
संगीत संध्या
११.६.२०१५
होटल ईस्ट पार्क बिलासपुर
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