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शुक्रवार, 19 जून 2015

muktika: salil

मुक्तिका:
संजीव 
*
मापनी: 
१२१२ / ११२२ / १२१२ / २२ 
ल ला ल ला ल ल ला ला, ल ला ल ला ला ला
महारौद्र जातीय सुखदा छंद 
*
मिलो गले हमसे तुम मिलो ग़ज़ल गाओ 
चलो चलें हम दोनों चलो चलें आओ 
यही कहीं लिखना है हमें कथा न्यारी 
कली खिली गुल महके सुगंध फैलाओ 
कहो-कहो कुछ दोहे चलो कहो दोहे 
यहीं कहीं बिन बोले हमें निकट पाओ 
छिपाछिपी कब तक हो?, लुकाछिपी छोड़ो 
सुनो बुला मुझ को लो, न हो तुम्हीं आओ 
भुला गिले-शिकवे दो, सुनो सपन देखो 
गले मिलो हँस के प्रिय, उन्हें 'सलिल' भाओ 
***  
क्या यह 'बहरे मुसम्मन मुरक़्क़ब मक्बूज़ मख्बून महज़ूफ़ो मक्तुअ' में है?

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